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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—मुँहु उघारि पिय लखि रह्यौ, मिस-सैन रह्यौ न गौ ओठ फरके, पुलक उठै, नैन उघरि जुरि गए।

उघारि = खोलकर। मिस-सैन = बहानेबाजी की नींद, बनावटी सोना (शयन)। पुलक = रोमांच। जुरि = मिलना।

मुँह उधारकर—मुँह पर से आँचल हटाकर—प्रीतम देख रहा था, अतः उस (नायिका) से झूठ-मूठ सोया न गया—आँखें मूँदकर जो सोने का बहाना किये हुए थी, सो बैसी न रह सकी। (पहले) ओठ फड़कने लगे (फिर) रोमांच उठ आये (और अन्त में) आँखें खुलकर (नायक की आँखों से) मिल गई।

बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करै भौंहनु हँसै दैन कहैं नटि जाइ॥३५६॥

अन्वय—बतरस-लालच लाल की मुरली लुकाइ धरी सौंह करै भौंहनु हँसै, दैन कहै, नटि जाइ।

बतरस = बातचीत का आनन्द। लुकाइ घरी = छिपाकर रक्खा। सौंह = शपथ। नटि जाइ = नाहीं (इनकार) कर देती है।

बातचीत का मजा लेने के लोभ से श्रीकृष्ण की मुरली छिपाकर रख दी। (अब श्रीकृष्ण के माँगने पर) शपथ खाती है, मौंह से हँसती है (भौंहों को नचा-नचाकर प्रसन्नता जताती है), देने को कहती है देने पर तैयार होती है, (और पुनः) नाहीं कर देती है।

नैंकु उतै उठि बैठियै, कहा रहे गहि गेहु।
छुटी जाति नहँ दी छिनकु महँदी सूकन देहु॥३५७॥

अन्वय—नैंकु उतै उठि बैठिये, कहा गेहु गहि रहे? नहँ दी छुटी जाति छिनकु महँदी सूकन देहु।

उतै = उधर। गहि = पकड़े। छुटी जाति = धुली या धुली जाती है। नहँ दी = नखों में दी या लगाई हुई। छिनकु = एक क्षण।

जरा उधर (अलग) उठकर बैठो। क्या घर को पकड़े रहते हो; क्या सदा घर में बैठे (घुसे) रहते हो? (देखो, तुम्हारे निकट रहने से प्रेमावेश के पसीने