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सटीक : बेनीपुरी
 

अस्पष्ट बातें, अधखुली आँखें, (शरीर में) पसीनों के सुन्दर कणों की ज्योति और गुल्लाला चेहरे की शोमा—(इन लक्षणों से युक्त वह नायिका) कामदेव की-सी शोभावाली अत्यन्त सुन्दरी हो जाती है।

निपट लजीली नवल तिय बहकि बारुनी सेइ।
त्यौं-त्यौं अति मीठी लगति ज्यों-ज्यों ढीठ्यो देइ॥३६१॥

अन्वय—निपट लजीली नवल तिय बहकि बारुनी सेइ ज्यौं-ज्यौं ढीठ्यो देइ त्यौ-स्यौं अति मीठी लगति।

निपट = अत्यन्त। नवल तिय = नवयुवती। बहकि = बहकावे (भुलावे) में आकर। मीठी = भली, प्यारी, लुभावनी, सुस्वादु। ढोठ्यो देइ = ढिठाई दिखाती है।

अत्यन्त लज्जावती उस नवयुवती ने भुलावे में आकर शराब पी ली—नायक ने शर्बत आदि के बहाने उसे शराब पिला दी; सो (नशे के कारण) ज्यों-ज्यों वह (लजा छोड़कर) धृष्टता (शोखी) दिखलाती है, त्यों-त्यों अत्यन्त मोठी (मनभावनी) लगती है।

बढ़त निकमि कुच-कोर-रुचि कढ़त गौर भुज-मूल।
मनु लुटिगौ लोटनु चढ़त चोंटत ऊँचे फूल॥३६२॥

अन्वय—ऊँचे चोंटत कुच-कोर-रुचि निकसि बढ़त, गौर भुज मूल कढ़त लोटनु चढत मनु लुटेगौ।

कुच = स्तन। कोर = घेग, किनारा, मंडल। रुचि = शोभा। भुज-मूल = बाँह का मूल-स्थान, पखौरा। लोटनु = त्रिवली, पेटी। चोंटत = चुनते (तोड़ते) समय। ऊँचे फूल = ऊँची डाल के फूल।

ऊँची डाल से फूल तोड़ते समय (हाथ ऊँचा करने के कारण) उसके

कुचमण्डल की शोमा (कंचुकी से) निकलकर बढ़ रही है, तथा (सुन्दर) गोरे पखौरे भी (कपड़े हट जाने से) बाहर निकल गये हैं। (इन शोमाओं को देखकर तो मन मुग्ध था ही कि उसकी) त्रिवली (की तीन सीढ़ियों) पर चढ़कर मन लुट गया।

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