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बिहारी-सतसई
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सही रँगीलैं रतजगैं जगी पगी सुख चैन।
अलसौहैं सौंहैं कियैं कहैं हँसौंहैं नैन॥३७७॥

अन्वय—रँगीलैं सही रतजगैं जागी सुख चैन पगी हँसौंहैं नैन अलसौंहैं सौहैं कियैं कहैं।

रतजगैं = किसी व्रत में रात-भर जागना। अलसौंहैं = अलसाये हुए। सौंहै = शपथ, कसम। हँसौंहैं = हँसीले।

अरी रँगीली! (तेरा कहना) सही है। (तू व्रत के) रतजगे में ही जागी है (तभी तो) सुख और चैन में पगी है—आनन्द और उत्साह में मस्त है। (और, तेरे ये) हँसीले नेत्र भी, आलस में मस्त बने, शपथ खाकर यही कह रहे हैं।

नोट—नायिका गत रात्रि के अपने समागम की बात छिपाती है, इसपर सखी चुटकी लेती है।

यौं दलमलियतु निरदई दई कुसुम सौं गातु।
करु धरि देखौ धरधरा उर कौ अजौं न जातु॥३७८॥

अन्वय—दई निरदई कुसुम सौं गातु यौं दलमलियतु, करु धरि देखौ अजौं उरकौ धरधरा न जातु।

दलमलियतु = मसलना, रौंदना। दई = दैव। करु = हाथ। धरधरा = घड़कना। अजौं = अभी तक। उर = हृदय।

हाय रे दई! उस निर्दयी (नायक) ने इसके फूल के ऐसे शरीर को यों मसल दिया है कि हाथ धरके देखो, अभीतक इसके हृदय से धड़कन नहीं जाती-अभीतक भय और पीड़ा से इसकी छाती धड़क रही है।

छिनकु उघारति छिनु छुवति राखति छिनकु छिपाइ।
सबु दिनु पिय-खंडित अधर दरपन देखत जाइ॥३७९॥

अन्वय—छिनकु उघारति छिनु छुवति छिनकु छिपाइ राखति सबु दिनु पिय-खंडित अधर दरपन देखत जाइ।

छिनकु = छिन + एकु = क्षण। अधर = ओठ। दरपन = दर्पण, आईना।

क्षण में उघारती है, क्षण में छूती है और पुनः क्षण में छिपा रखती है