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बिहारी-सतसई
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अन्वय—मैन गुरेरनु मारि मतंगु-मनु मोरि आन्यौ, वेई गड़ि गाड़ परीं, हारु हियैं न ष्ठपठ्यौ।

गाड़ि = गड़कर, गड़ने से। गाड़ैं = गड्ढे। उपट्यौ = गड़कर गहरा दाग उखड़ आना। आन्यौ मोरि = मोड़ लाया। मतंगु = मतवाला हाथी। मनु = मन। गुरेरनु = गुलेल, गुलेती। मैन = कामदेव।

कामदेव गुलेलों से मार-मारकर तुम्हारे मन-रूपी मतवाले हाथी को इस ओर मोड़ (फेर) लाया है, उन्हीं (गुलेल की गोलियों) के गड़ने से ये गड्ढे पड़ गये हैं। (दूसरी स्त्री के साथ समागम करते समय) उसका हार तुम्हारे हृदय में नहीं उपटा है— (ये गड्ढे हार की मणियों के गड़ने से नहीं बने हैं।)

नोट—नायक दूसरी स्त्री के साथ बिहार करके आया है। नायिका उपालम्भ देती है। अगले कई दोहों में ऐसे उपालम्भ मिलेंगे।

पलनु पीक अंजनु अधर धरे महाबरु भाल।
आजु मिले सु भली करी भले बने हौ लाल॥३८३॥

अन्वय—पलनु पीक अधर अंजनु भाल महावरु धरे; आजु मिले सु भली करी लाल मले बने हौ।

पलनु = पलकों में। अधर = ओठ। भाल = ललाट।

पलकों में (पान की) पीक है—मर-रात कहीं दूसरी स्त्री के साथ जगे हो, उसीकी लाली है। अधरों पर अंजन लगा है—किसी मृगनैनी के कजरारे नयनों को चूमा है, उन्हीं का अंजन लग गया है और ललाट पर महावर धारण किये हुए हो—किसी मानिनी को पैरों पड़कर मनाया है, उसीका महावर लग गया है। आज (इस बाने से) मिले हो, सो अच्छा ही किया है (क्योंकि) हे लाल! (आज तुम) बड़े अच्छे बने हो—आज का तुम्हारा यह रूप बहुत बढ़िया दीख पड़ता है!

गहकि गाँसु औरै गहै रहे अधकहे बैन।
देखि खिसौहैं पिय नयन किए रिसौंहैं नैन॥३८४॥