पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१७५

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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—गहकि औरै गाँसु गहै अधकहे बैन रहे, पिय खिसौंहैं नयन देखि बैन रिसौंहैं किए।

गहकि = क्रोधित होकर। गाँसु = वैमनस्य, अनख। अधकहे बैन = अधूरे वचन। खिसौंहैं = लज्जित। रिसौंहैं = रोषयुक्त।

क्रोधित होकर अधिक शत्रुता पकड़ ली—खूब उत्तेजित हो गई। आधे कहे हुए वचन मुख में ही रह गये। प्रीतम की लज्जित आँखें देखकर (उन्हें मर-रात दूसरी स्त्री के संग रहा समझकर, नायिका ने) अपनी आँखें रोषयुक्त कर लीं।

तेह तरेरौ त्यौरु करि कत करियत दृग लोल।
लीक नहीं यह पीक की स्रुति-मनि झलक कपोल॥३८५॥

अन्वय—तेह तरेरौ त्यौरु करि दृग कत लोल करियत कपोल यह पीक की लीक नहीं, स्रुति-मनि-झनक।

तेह = क्रोध। तरेरौ त्यौरु करि = त्यौरियाँ चढ़ाकर। लोल = चंचल। लीक = रेखा। स्रुति-मनि = कर्ण-भूषण की मणि। कपोल = गाल।

क्रोध से त्यौरियाँ चढ़ाकर आँखें क्यों चंचल कर रही हो? गालों पर यह पीक की रेखा नहीं है—किसी दूसरे ने चुम्बन किया है, उसके अधरों की लाली नहीं है (वरन्) कर्ण-भूषण की मणि की (लाल) झलक (प्रतिबिम्ब) है। दर्पणोज्ज्वल कपोलों में कर्णफूल-मणि की अरुण आभा प्रतिफलित हो रही है।)

बाल कहा लाली भई लोइन कोइनु माँह।
लाल तुम्हारे दृगनु की परी दृगनु मैं छाँह॥३८६॥

अन्वय—बाल लोइन कोइनु माँह लाली कहा भई, लाल तुम्हारे दृगनु की छाँह दृगनु मैं परी।

लोइन = आँखें। कोइनु = आँखों के भीतर का उजला हिस्सा। माँह = में। दृगनु = आँखें। छाँह = छाया।

हे बाले! तुम्हारी आँखों के कोयों में लाली क्यों छा गई है? हे लाल! तुम्हारी आँखों की छाया ही मेरी आँखों में पड़ गई है—(तुम जो रात-भर