मन दूसरी स्त्री से लगा है, तो भी केवल तसल्ली देने के लिए ही)—आकर (वह नायक) विरह की ज्वाला बुझा जाता है।
कत बेकाज चलाइयति चतुराई की चाल।
कहे देति यह रावरे सब गुन निरगुन माल॥३९७॥
अन्वय—कत बेकाज चतुराई की चाल चलाइयति, यह निरगुन माल रावरे सब गुन कहे देति।
कत = क्यों। बेकाज = व्यर्थ। निरगुन माल = बिना डोरे की माला। चतुराई की चाल चलाइयति = चालाकी-भरी बातें करते हो।
क्यों व्यर्थ चतुराई की बातें करते हो? यह बिना डोरे को माला ही आपके सब गुणों को कहे देती है (कि आपने किसी अन्य स्त्री का गाढालिंगन किया है, जिससे उसकी छाती की माला का निशान बिना डोरी की माला के ऐसा आपकी छाती में पड़ गया।)
पावक सो नयननु लगै जावक लाग्यौ भाल।
मुकुरु होहुगे नैंकु मैं मुकुरु बिलोकौ लाल॥३९८॥
अन्वय—भाल जावक लाग्यौ नयननु पावक सो लगै। लाल मुकुरु बिलोकौ नैंकु मैं मुकुरु होहुगे।
पावक = आग। जावक = महावर। मुकुरु होहुगे = मुकर (नठ) जाओगे। नैंकु = जरा, तुरंत, एक क्षण में। मुकुरु = आईना।
आपके मस्तक में लगा हुआ (किसी दूसरी स्त्री के पैर का) महावर (मेरे) नेत्रों में भाग के समान (लाल) मालूम पड़ता है। एक क्षण में ही तुम मुकर (इन्कार कर) जाओगे, अतएव हे लाल! आईने में देख लो।
रही पकरि पाटी सुरिस भरै भौंह चितु नैन।
लखि सपने पिय आन-रति जगतहुँ लगत हियैं न॥३९९॥
अन्वय—पाटी पकरि रही भौंह चितु नैन सु रिस भरै सपने पिय आनरति लखि जगतहुँ हियैं न लगत।
रिस = क्रोध। आन-रति = पर-स्त्री प्रसंग करते हुए। हियै = हृदय से।