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सटीक : बेनीपुरी
 

पलँग की पाटी पकड़कर रह गई। भौंह, मन और नेत्र क्रोध से भर गये— मौंहें तिरछी हुई, मन रोषयुक्त हुआ और आँखें लाल हो गई। स्वप्न में प्रीतम को दूसरी स्त्री से समागम करते देख जगने पर भी (निकट ही सोये हुए प्रीतम के) हृदय से नहीं लगती।

रह्यौ चकित चहुँधा चितै चितु मेरो मति भूलि।
सूर उयै आए रही दृगनु साँझ-सी फूलि॥४००॥

अन्वय—चकित चहुँधा चितै रह्यौ मेरो मति भूलि, सूर उयै आए दृगनु साँझ-सी फूलि रही।

चदुँघा = चारों ओर। सूर = सूर्य। दृगनु =आँखें।

ये (नायक) चकित होकर चारों ओर देख रहे हैं—भेद खुलने के भय से इधर-उधर ताक-झाँक कर रहे हैं। हे मेरे चित! तुम मत भूलो। देखो, ये सूर्योदय के समय तो आये हैं, किन्तु इनकी आँखें संध्या-सी फूल रही हैं— लाल-लाल हो रही हैं। (अतएव, निस्संदेह रात-भर कहीं जगे हैं।)

 

 

पंचम शतक

अनत बसे निसि की रिसनु उर बरि रही बिसेखि।
तऊ लाज आई झुकत खरे लजौहैं देखि॥४०१॥

अन्वय—निसि अनत बसे की रिसनु उर बिसेखि बरि रही—तऊ खरे लजौंहैं झुकत देखि लाज आई।

अनत = दूसरी जगह। रिसमु = क्रोध से। बरि रही = जल रही। झुकत = झुकते, पैरों पड़ते। खरे लजौंहैं = अत्यन्त लजित।

रात में दूसरी जगह रहने के कारण क्रोध से (नायिका का) हृदय विशेष रूप से जल रहा था। किन्तु (प्रीतम को इसके लिए) अत्यन्त लज्जिन और

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