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बिहारी-सतसई
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पैरों पड़ते देखकर (उसके हृदय में मी) लाज उमड़ आई—वह भी लजित हो गई।

सुरँग महावरु सौति-पग निरखि रही अनखाइ।
पिय अँगुरिनु लाली लखैं खरी उठी लगि लाइ॥४०२॥

अन्वय—सौति-पग सुरँग महावरु अनखाइ निरखि रही। पिय अँगुरिनु लाली लखैं खरी लाइ नगि उठी।

सुरंग = लाल। अनखाइ = अनखाकर, अनमनी होकर। खरी = अत्यन्त। लगि लाइ उठी = आग-सी लग उठी = जल उठी। लाइ = आग।

सौतिन के पैर का लाल महावर अनखा (अनमनी हो) कर देख रही थी। (इतने में) प्रीतम की अँगुलियों में लाली देखकर वह अत्यन्त जल उठी (इसलिए कि सौतिन के पैर में इन्होंने महावर लगाया है)।

कत सकुचत निधरक फिरौ रतियौ खोरि तुम्हैं न।
कहा करौ जो जाइ ए लगैं लगौंहैं नैन॥४०३॥

अन्वय—सकुचत कत निधरक फिरौ तुम्हैं रतियौ खोरि न, जो ए लगौंहैं नैन लगैं जाइ कहा करौ।

कत = क्यों। रतियौ = रत्ती-भर भी। खोरि = दोष। कहा = क्या। लगौंहैं = लगनेवाले, लगीले, फँसनेवाले, लगन-भरे।

सकुचाते क्यों हो? बेधड़क घूमो। तुम्हारा तनिक भी दोष नहीं है। यदि ये लगीले नेत्र जाकर (किसी अन्य स्त्री से) लग जाते हैं, तो तुम क्या करोगे—तुम्हारा इसमें क्या दोष है? (दोष तो है आँखों का!)

प्रानप्रिया हिय मैं बसै नख-रेखा-ससि भाल।
भलौ दिखायौ आइ यह हरि-हर-रूप रसाल॥४०४॥

अन्वय—प्रानप्रिया हिय मैं बसै नख-रेखा-ससि भाल। यह हरि-हर रसाल रूप आइ भलौ दिखायौ।

ससि = चन्द्रमा। भाल = मस्तक। रसाल = रसीला, सुन्दर। हरि-हर = विष्णु और शंकर।

(विष्णु के हृदय में बसी हुई लक्ष्मी के समान) तुम्हारी प्रियतमा तुम्हारे