पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१८५

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। १६५ सटीक : बेनीपुरी होने पर भी जरा-सा कच्चा रह जाने पर मुंह में सुरसुराहट और खाज-सी पैदा करता है। मैं =समान । मुंह लागि =(१) मुंह से लगकर, जबान पर आकर (२) मुँह में खुजलाहट पैदा कर । हे लाल ! आर लावण्ययुक्त हैं, और स्नेह में अत्यन्त शराबोर भी है। किन्तु आपकी जरा-सी कच्चाई भी सूरन के समान मुख से लगकर दुःख देती है। कत लपटइयतु मो गरे सो न जु ही निसि सैन । जिहिं चंपकबरनी किए गुल्लाला रंग नैन ।। ४१० ।। अन्वय-मो गरे कत लपटइयतु सो न जु निसि सैन ही, जिहिं चंपकबरनी नैन गुल्लाला रंग किए । सो=वह । जु-जो। ही=थी । सैन = शयन । जिहि = जिस । चंपक- चरनी चम्पा के फूल के समान सुनहली देहवाली । गुल्लाला = एक प्रकार का लाल फूल। मेरे गले से क्यों लिपटते हो ? मैं वह नहीं हूँ, जो रात में साथ सोई थी, और जिस चमकवर्णी ने तुम्हारी आँखों को गुल्जाला के रंग का कर दिया था--रात-भर जगाकर लाल कर दिया था । पल सोहैं पगि पीक रँग छल सोहैं सब वैन । बल सौहैं कन कीजियत ए अलमोह नैन ॥ ४११ ॥ अन्वय-पल पीक रंग पगि सोहैं, सब बैन छल सोहैं । ए अलसौहैं नैन बल सौह कत कीजियत । पल = पलक । सोहैं = शोभते हैं। पगि = पगकर, शराबोर होकर । पीक रंग = लाल रंग । छल सोहैं = छल से भरी हैं। बलजबरदस्ती । सौहैं = मामने । अलसौहैं = अलसाये हुए । तुम्हारी पजक पीक के रंग से शराबोर होकर शोम रही हैं -रात-भर जगने से आँखें लाल हो गई हैं और, तुम्हारी सारी बात छन्न से (भरी) हैं । फिर, इन अलसाई हुई आँखों को जबरदस्ती सामने ( करने की चेष्टा ) क्यों कर रहे हो?