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सटीक : बेनीपुरी
 

तपाइ = गर्म करके। त्रय-ताप = तोन ताप = कामाग्नि , विरहाग्नि और उद्दीपन-ज्वाला। हमामु = हम्माम, स्नानागार। मति = संभावना-सूचक शब्द, शायद। पुलकि पसीजै = रोमांचित और पसीने से भीजे हुए।

मैंने अपने हृदय-रूपी स्नानागार को तीन तापों से तपाकर (इसलिए) रक्खा है कि शायद कमी (किसी दूसरी प्रेमिका से समागम करने के पश्चात्) रोमांचित और पसीने से तर होकर कृष्णचन्द्र यहाँ आ जावें (तो स्नान करके थँकावट मिटा लें)।

नोट—कृष्ण के प्रति राधा का उपालम्भ। जिस तरह हम्माम में तीन ओर से (छत से, नीचे से तथा दीवारों से) पानी में गर्मी पहुँचाई जाती है, उसी प्रकार मैंने भी अपने हृदय को उक्त तीन तापों से गर्म कर रक्खा है।

आज कछू और भए छए नए ठिकठैन।
चित के हित के चुगुल ए नित के होहिं न नैन॥४१५॥

अन्वय—नए ठिकठैन छए आज कळू औरै भए, चित के हित के चुगल ए नैन नित के न होहिं।

नए ठिकठैन छए = नये ठीकठाक से ठये, नवीन सजधन से सजे। चित के हित के = हृदय के प्रेम के। चुगुल = चुगलखोर। नित = नित्य।

नवीन सजधज से मजे आज ये कुछ और ही हो गये हैं। चित्त के प्रेम की चुगली करनेवाले ये नेत्र नित्य के-से नहीं हैं—जैसे अन्य दिन थे, वैसे आज नहीं हैं। (निस्संदेह आज किसीसे उलझ आये हैं।)

फिरत जु अटकत कटनि बिनु रसिक सुरम न खियाल।
अनत-अनत नित-नित हितनु चित मकुचत कत लाल॥४१६॥

अन्वय—बिनु कटनि जु अटकत फिरत रसिक सुरस खियाल न, नित-नित अनत-अनत हितनु लाल चित कत सकुचत।

अटकत फिरत = समय गँवाते फिरते हो। कटनि = आसक्ति। खियाल = विचार, तमीज। अनत-अनत = अन्यत्र, दूसरी-दूसरी जगहों में। सकुचत = लजाते हो।