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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—पट सौं पोंछि परी करौ भेख खरी भयानक। नागबेलि रँग रेख दृगनु नागिनि ह्वै लागति।

पट = कपड़ा। परी करौ — दूर करो। खरी = अत्यन्त। भेख = वेष = रूप। दृगनु = आँखों में। नागबेलि = नाग-वल्ली, पान। रेख = लकीर।

कपड़े से पोंछकर दूर करो—मिटाओ। इसका वेष अत्यन्त भयावना है। (तुम्हारे नेत्रों में लगी हुई) पान की लकीर मेरी आँखों में नागिन के समान लग रही है (नागिन-सी डँस रही है।)

नोट—पर-स्त्री के साथ रात-भर जगने से नायक की आँखें लाल-लाल हो रही हैं। इसलिए क्रुद्ध होकर नायिका व्यंग्यबाण छोड़ रही है।

ससि-बदनी मोकौ कहत हौं समुझी निजु बात।
नैन-नलिन प्यौ रावरे न्याव निरखि नै जात॥४२०॥

अन्वय—प्यौ निजु बात हौं समुझी, मोकौ ससि-बदनी कहत रावरे नैन-नलिन न्याव निरखि नै जात।

ससि-बदनी = चन्द्रमुखी। मोको = मुझको। निजु = निजगुत, ठीक-ठीक। नलिन = कमल प्यौ = पिय। नै जात = नम जाते हैं, झुक जाते हैं।

हे प्रीतम! सच्ची बात मैंने आज समझी। मुझे आप चन्द्रवदनी कहते हैं (इसीलिए) आपके नेत्र (अपने को) कमल-तुल्य समझकर (मेरे मुखचन्द्र के सामने) झुक (संकुचित हो) जाते हैं।

नोट—रात-भर नायक दूसरी स्त्री के पास रहा है। प्रातःकाल लज्जावश नायिका के सामने उसकी आँखें नहीं उठतीं- झेंपती हैं। चन्द्रमा के साथ कमल अपनी आँखें बगबर नहीं कर सकता।

दुरै न निघरघट्यौ दियैं ए रावरी कुचाल।
बिपु-सी लागति है बुरी हँसी खिसी की लाल॥४२१॥

अन्वय—निवरघट्यौ दियैं रावरी ए कुचाल न दुरै। लाल, खिसी की हँसी विषु-सी बुरी लागति है।

निघरघट्यौ = सफाई देना। कुचाल = दुश्चरित्रता। गवरी = आपकी। खिसी की हँसी = खिसियानपन की हँसी, बेहयाई की हँसी।