बिहारी-सतसई १७० सफाई देने पर भी आपकी यह कुचाल नहीं छिर सकती। हे लाल, (आपकी ) यह बेहयाई की हंसी ( मुझे ) विष के समान बुरी लगती है। जिहिं भामिनि भूषनु रच्यौ चरन-महाउर भाल । उहीं मनौ अँखियाँ रंगी ओठनु कै रँग लाल ।। ४२२ ।। अन्वय-जिहिं मामिनि चरन-महाउर माल भूषनु रच्यो, लाल मनौ उहीं ओठनु कै रँग अँखियाँ रंगीं । जिहिं = जिसने । भामिनि =स्त्री। भाल =मस्तक । मनौ-मानो। जिस स्त्री ने (अपने ) पैरों के महावर से (तुम्हारे ) मस्तक में भूषण रचा है-तुम्हारे मस्तक को भूषित किया है-हे लाल ! मानो उसीने अपने ओठों के ( लाल ) रंग में तुम्हारी आँख मी रंग दी हैं। (जिस मानिनी स्त्री के पैरों पड़कर तुमने मनाया है, उसीने रात-भर जगा-जगाकर तुम्हारी आँखें लाल-लाल कर दी हैं।) नोट -"ओठनु के रंग अँखियाँ रँगी' में हृदय-संवेद्य सरसता है । चितवनि रूखे हगनु की हाँसो बिनु मुसकानि । मानु जनायौ मानिनी जानि लियौ पिय जानि ।। ४२३ ।। अन्वय-रूखे दृगनु की चितवनि, बिनु हाँसी मुसकानि, मानिनी मानु जनायौ, जानि पिय जानि लियो। रूखे-प्रेमरसहीन । दृगनु =आँखें । जानि =ज्ञान, प्रवीण । रूखी आँखों की चितवन और विना हँसी की मुस्कुराहट से मानिनी ने अपना मान जताया और प्रवीण प्रीतम ने जान लिया- इन लक्षणों को देखकर नायिका का मान परख लिया । बिलखी लखै खरो-खरी भरी अनख बैराग । मृगनैनो सैन न भजै लखि बेनी के दाग ।। ४२४ ।। अन्वय-मृगनैनी अनख बैराग भरी खरी-खरी बिलखी लखै, बेनी के दाग लखि सैन न भजै। बिलखी = व्याकुलता से । अ क्रोध । बैराग = उदासीनता । सैन न भजै = शयन नहीं करती, शय्या पर नहीं जाती।