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सटीक : बेनीपुरी
 

सोवति लखि मन मानु धरि ढिग सोयौ प्यौ आइ।
रही सुपन की मिलनि मिलि तिय हिय सौं लपटाइ॥४३०॥

अन्वय—मन मानु धरि सोवति लखि प्यौ ढिग आइ सोयो, तिय हिय सौं लपटाइ सुपन की मिलनि मिलि रही।

मन में मान धारण कर प्रियतमा को सोया देख प्रीतम (चुपचाप) उसके निकट आकर सो रहा। (इधर) प्रियतमा मी (अंग-स्पर्श से कामोद्दीपन होने के कारण) उसके हृदय से लिपटकर स्वप्न का मिलन मिलने लगी।

नोट—नायक पर नायिका क्रुद्ध थी। झूठमूठ सोने का बहाना किये पड़ी थी। नायक रहस्य समझ गया। चुपचाप उसके पास सटकर सो रहा। अब वह अपने प्रेमावेश को रोक न सकी, किन्तु खुलकर मिलने में अपनी हेठी समझ, नींद की बेखबरी में ही नायक के गले से यों लिपट गई मानो स्वप्न में मिल रही हो। स्त्रियों की तरल प्रकृति का यह चित्र है।

 दोऊ अधिकाई भरे एकै गौं गहराइ।
कौनु मनावै को मनै मानै मन गहराइ॥४३१॥

अन्वय—दोऊ अधिकाई भरे एकै गौं गहराइ, कौनु मनावै को मनै मानै मन ठहराइ।

गौं = घात। गहराई = अड़ना, डटना। मानै = मान ही में।

दोनों ही अधिकाई से भरे हैं—एक दूसरे से बढ़े-चढ़े हैं (और दोनों) एक ही घात पर अड़े हुए हैं—(वे सोचते हैं कि वह मनावेगी, और यह सोचती है कि वे मनावेंगे)। फिर कौन किसको मनावे और कौन किससे माने? (शायद) मान ही में दोनों की मनि ठहरती है—दोनों को मान ही पसन्द है।

लग्यो सुमनु ह्वैहै सुफलु आतप-रोसु निवारि।
बारी बारी आपनी सींचि सुहृदता-बारि॥४३२॥

अन्वय—सुमनु लग्यो सुफलु ह्वैहै आतप-रोसु निवारि आपनी बारी बारी सहृदता-बारि सींचि।

सुमन = (१) सुन्दर मन (२) फूल। सुफल = (१) सफलता (२) सुन्दर फल। आतप = धूप, घाम। रोस = रोष = क्रोध। बारी = (१)