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बिहारी-सतसई
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अनुभवहीन बालिका (२) मँजरी हुई। बारी = (१) पारी, माँज (२) वाटिका, फुलवारी। सुहृदता = प्रेम, सहृदयता। बारि = पानी।

(जब) सुन्दर मन (रूपी फूल) लगा है, (तब) सफलता (रूपी सुन्दर फल) होगी ही। अतः क्रोध-रूपी धूप को निवारण कर अपनी इस मँजरी हुई वाटिका में प्रेम-रूपी जल छिड़क-अथवा, अपनी पारी आने पर दिल खोलकर नायक से मिल।

गह्यो अबोलौ बोलि प्यौ आपुहिं पठै बसीठि।
दीठि चुराई दुहुँनु की लखि सकुचौंही दीठि॥४३३॥

अन्वय—आपुहिं बसीठि पठै प्यौ बोलि अबोलौ गह्यौ, दुहुँनु की सकुचौंही दीठि लखि दीठि चुराई।

आपुहिं = स्वयं ही। गह्यो अबोलौ = मौन धारण कर लिया। बोलि = बुलाकर। बसीठि = दूती। दीठि = नजर। सकुचौंही = लजीली।

स्वयं दूती भेज प्रीतम को बुलाकर (उनके आने पर) मौन धारण कर लिया। (दूती और प्रीतम) दोनों की लजीली आँखों को देखकर (यह समझ कि दोनों ने मिलकर रतिक्रीड़ा की है, क्रोध में आ) उसने, अपनी नजर चुरा ली—नायक से आँखें तक न मिलाईं।

मानु करत बरजति न हौं उलटि दिवावति सौंह।
करी रिसौंहीं जाहिंगी सहज हँसौंहीं भौंह॥४३४॥

अन्वय—मानु करत हौं न बरजति उलटि सौंह दिवावति। सहज हँसौंहीं भौंह रिसौंहीं करी जाहिंगी।

बरजति = बरजना, मना करना। सौंह = शपथ। रिसौंहीं = रोषयुक्त, टेढ़ी। सहज = स्वाभाविक। हँसौंहीं = हँसोड़, विकसित, प्रसन्नता-सूचक।

मान करने से मैं मना नहीं करती, (वरन्) उलटे मैं शपथ दिलाती हूँ (कि तू अवश्य मान कर; किन्तु कृपा कर यह तो बता कि क्या तुझसे) ये स्वामाविक हँसोड़ भौंहें रोषयुक्त (बंक) की जा सकेंगी?

खरी पातरी कान की कौनु बहाऊ बानि।
आक-कली न रली कर अली अली जिय जानि॥४३५॥