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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—कान की खरी पातरी कौनु बहाऊ बानि। अली जिय जानि अली आक-कली रली न करै।

खरी = अत्यन्त। बहाऊ = बहा ले जानेवाली, बहकाऊ। आक = अकवन। रली करै = बिहार करे। अली = सखी। अली = भौंरा।

तुम कान की अत्यन्त पतली हो—जो कोई चुगली कर देता है, सुन लेती हो। यह कौन-सी बहकाऊ पादत है? सखी! यह बात हृदय से जान लो कि भौंरा अकवन की कली के साथ विहार नहीं करता—(तुम-सी तन्वंगी तरुणी को छोड़कर अन्य काली-कलूटी के पास वह रसिक नायक नहीं जा सकता।)

रुख रूखी मिस रोष मुख कहति रुखौंहैं बैन।
रूखे कैसैं होत ए नेह चीकने नैन॥४३६॥

अन्वय—रूखी रुख रोष मिस मुख रुखौंहैं बैन कहति, नेह चीकने नैन ए कैसैं रूखे होत।

रुख = चेष्टा। मिस = बहाना। रुखौंहैं = रूखी-सूखी, कर्कश। नेह-बीकने = (१) स्नेह-स्निग्ध, प्रेम-रस में पगे (२) चेल से चीकने बने।

रूखी चेष्टा से क्रोध का बहाना कर मुख से रूखी बातें कहती है; किन्तु प्रेम से पगे ये नैन कैसे रूखे हों?

सौंहैं हूँ हेस्यौ न तैं केती द्याई सौंह।
ए हो क्यौं बैठी किए ऐंठी-ग्वैंठी भौंह॥४३७॥

अन्वय—केती सौंह द्याई तैं सौंहैं हूँ न हेस्यौ ए हो ऐंठी-ग्वैंठी भौंह किए क्यौं बैठी?

सौंहैं = सम्मुख। हेरयौ = देखा। द्याई = दिलाई। सौंह = शपथ, कसम। ए हो = अरी। ऐंठी-ग्वैंठी = टेढ़ी-मेढ़ी, बंकिम।

कितनी भी कसमें दिलाई; किन्तु तूने सामने न देना—मेरी ओर न ताका। अरी, यों भौंहों को टेढ़ी-मेढ़ी करके क्यों बैठी है?

ए री यह तेरी दई क्यौं हूँ प्रकृति न जाइ।
नेह-भरे ही राखियै तउ रुखियै लखाइ॥४३८॥