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सटीक : बेनीपुरी
 

बालम बारैं सौति कैं सुनि पर-नारि-बिहार।
भो रसु अनरसु रिस रली रीझि खीझि इक बार॥४६८॥

अन्वय—सौति कैं बारैं बालम पर-नारि-बिहार सुनि रसु अनरसु रिस रली रीझि खीझि इक बार भो। बालम = वल्लभ = पति। बारैं = पारो, भाँज। बिहार = सम्भोग। रसु = सुख। अनरसु = दुःख। रिस = क्रोध। रली = क्रीड़ा, मजाक। रीझि = प्रसन्नता। खीझि = अप्रसन्नता।

सौतिन की पारी में अपने पति के दूसरी स्त्री के साथ बिहार करने की बात सुनकर नायिका के मन में सुख और दुःख, क्रोध और मजाक, रीझ और खीझ (ये परस्पर-विरोधी भाव) एक ही समय हुए।

नोट—सुख, मजाक और रीझ इसलिए कि अच्छा हुआ, सौतिन को दुःख हुआ; और क्रोध तथा खीझ इसलिए कि कहीं मेरी पारी में भी ऐसा ही न हो।

सुघर-सौति-बम पिउ सुनत दुलहिनि दुगुन हुलास।
लखी सखी-तन दीठि करि सगरब सलज सहास॥४६९॥

अन्वय—पिउ मुघर-सौति-बस सुनत दुलहिनि हुलास दुगुन, दीठि सगरब मलज सहास करि सखी-तन लखी।

सुघर = सुन्दर गढ़न की, सुडौल। दुलहिनि = नई बहू, नवोढ़ा। हुलाम = आनन्द। सखी-तन = सखी की ओर। दीठि = नजर।

अपने पति को सुन्दरी सौतिन के वश में सुनकर नई बहू का आनन्द दुगुना हो गया। उसने गर्वीली, लजीली और हँसीली नजरों से सखी की ओर देखा।

नोट—आनन्दित होकर सखी की ओर देखने का भाव यह है कि हे सखी, घबराओ मत, यदि वे वस्तुतः सौन्दर्य्य के प्रेमी हैं, तो एक-न-एक दिन अवश्य मेरी ओर आकृष्ट होंगे। रूपगर्विता!!

 हठि हितु करि प्रीतम लियौ कियौ जु सौति सिंगारु।
अपने कर मोतिनु गुह्यौ भयौ हरा हर-हारु॥४७०॥