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सटीक : बेनीपुरी
 

साँई = स्वामी, पति। सवारु = सवेरे। राग्यौ = गाया, अलापा।

पूस के महीनों में, सखियों से (यह) सुनकर कि कल प्रातःकाल प्रीतम (परदेश) जायँगे, वह सुचतुरा स्त्री हाथ में वीणा लेकर मनार-राग गाने लगी (ताकि मेघ बरसे और प्रीतम का परदेश जाना रुक जाय; क्योंकि अकाल वृष्टि से यात्रा रुक जायगी)।

नोट—संगीत-शास्त्र के अनुसार मलार-राग गाने से मेघ बरसता है और सुखद बरसात में रसिक पति परदेश नहीं जाते।

ललन चलनु सुनि चुपु रही बोली आपु न ईठि।
राख्यौ गहि गाढ़ै गरैं मनौ गलगली डीठि॥४७८॥

अन्वय—ईठि ललन चलनु सुनि चुपु रही आपु न बोली; मनौ गलगली डीठि गरैं गढ़ैं गहि राख्यौ।

ललन = प्रीतम। ईठि = प्यारी सखी। गाढ़ैं गहि = जोर से पकड़कर। गरैं = गला। गलगली = आँसुओं से डबडबाई हुई। डीठि = आँख।

हे सखी, प्रीतम का (परदेश) चलना सुनकर वह चुप हो रही, स्वयं कुछ नहीं बोली, मानो डबडबाई हुई आँखों ने उसके गले को जोर से पकड़ रक्खा हो—(अश्रुगद्गद कंठ रुद्ध हो गया हो!)।

बिलखी डभकौंहैं चखनु तिय लखि गवनु बराइ।
पिय गहबरि आएँ गरैं राखो गरैं लगाइ॥४७९॥

अन्वय—बिलखी डमकौंहैं चखनु तिय लखि गवनु बराइ, पिय गरैं गहबरि आऐं गरैं लगाइ राखी।

बिलखी = व्याकुल। डमकौंहैं = डबडबाई हुई। गवनु बराइ = जाना रोककर। गहवरि आऐ गरें = भर आये हुए गले से, गद्गद कंठ से।

व्याकुल और डबडवाई हुई आँखों से, नायिका को देश (परदेश) जाना रोककर प्रीतम ने गद्गद कंठ से उसे गले लगा रक्वा।

चलत लत लौं लै चलैं सब मुख संग लगाइ।
ग्रीषम-बासर सिसिर-निसि प्यौ मो पास बसाइ॥४८०॥