पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बिहारी-सतसई
२०४
 

बीछुरे = बिछुड़ गये। मो = मेरा। तो = तेरा। कितहूँ = कहीं भी। गुड़ी = गुड्डी, पतंग। तऊ = तो भी। उड़ाइक = उड़ानेवाला, खेलाड़ी।

यदि बिछुड़ ही गये, तो क्या हुआ? मेरा मन तो तुम्हारे मन के साथ है। गुड्डी कहीं भी उड़कर जाती है, तो भी वह उड़ानेवाले (खेलाड़ी) ही के हाथ में रहती है—जब उड़ानेवाला चाहता है, उसकी डोर खींचकर निकट ले आता है। (उसी प्रकार तुम्हें भी मैं, जब चाहूँगी, अपनी प्रेम-डोर से अपनी ओर खींच लूँगी।) नोट—"कर छटकाये जात हो, निबल जानि कै मोहि। हिरदै से जब जाहुगे मरद बखानौं तोहि॥"—सूरदास

जब जब वै सुधि कीजियै तब सब ही सुधि जाहिं।
आँखिनु आँखि लगी रहै आँखैं लागति नाहिं॥५१०॥

अन्वय—जब जब वै सुधि कीजियै तब सब ही सुधि जाहिं, आँखि आँखिन लगी रहै, आँखैं नाहिं लागति।

आँखैं लागति नाहिं = आँखें नहीं लगतीं = नींद नहीं आती।

जब-जब उन बातों की याद आती है, तब-तब सभी सुधि जाती रहती है—बिसर जाती है। उनकी आँख मेरी आँखों से लगी रहती हैं, इसलिए मेरी आँखें भी नहीं लगतीं—मुझे नींद भी नहीं आती। नोट—"तनक काँकरी के परै होत महा बेचैन। वे बपुरे कैसे जियें जिन नैनन में नैन॥"

कौन सुनै कासौं कहौं सुरति बिसारी नाह।
बदाबदी ज्यौ लेत हैं ए बदरा बदराह॥५११॥

अन्वय—कौन सुने कासौं कहौं नाह सुरति बिसारी। ए बदराह बदरा बदाबदी ज्यौ लेत हैं।

सुरति = स्मृति, याद, सुधि। बदाबदी = शर्त बाँधकर। ज्यौ लेत हैं = जान मारते हैं। बदरा = बादल। बदराह = कुमार्गी, बदमाश।

कौन सुनता है, किससे कहूँ। प्रीतम ने सुधि भुला दी। ये बदमाश बादल