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सटीक : बेनीपुरी
 

बाजी लगाकर जान ले रहे हैं—शर्त लगाकर प्राण लेने पर तुले हैं (इनसे रक्षा कौन करे?)

औरै भाँति भएऽब ए चौसरु चंदनु चंदु।
पति बिनु अति पारतु बिपति मारतु मारुत मंदु॥५१२॥

अन्वय—चौसरु चंदन चंदु ऽब ए औरै भाँति भए। पति बिनु अति बिपति पारतु मंदु मारुत मारतु।

भएऽब = भये अब, अब हुए। चौसरु = चार लड़ियों की मोती-माला। चंदनु = श्रीखण्ड। बिपति पारतु = दुःख देते हैं। मारुत = हवा।

मोती की चौलरी, चंदन और चन्द्रमा, ये सब अब और ही भाँति के हो गये—कुछ विचित्र से हो गये। प्रीतम के बिना ये सब अत्यन्त दुःख देते हैं और, मंद-मंद हवा तो मारे ही डालती है।

नैंकु न झुरसी-बिरह-झर नेह-लता कुम्हिलाति।
नित-नित होति हरी-हरी खरी झालरति जाति॥५१३॥

अन्वय—नेह-लता बिरह-झर-झुरसी नैंकु न कुम्हिलाति। नित-नित हरी-हरी होति खरी झालरति जाति।

नैंकु = जरा, तनिक। झुरसी = झुलसकर। झर = ज्वाला, लपट। खरी = अधिक, खूब। झालरति = फैलती या सघन पल्लवों से भरी जाती है।

प्रेम-रूपी लतिका विरह की ज्वाला से झुलसकर तनिक भी नहीं कुम्हिलाती, वरन् नित्य-प्रति हरी-भरी होनी और खूब फूलती-फैलती जाती है।

यह बिनमतु नगु राखिकै जगत बड़ौ जसु लेहु।
जरो बिषम जुर ज्याइयैं आइ सुदरसनु देहु॥५१४॥

अन्वय—यह बिनसतु नगु राखिकै जगत बड़ौ जसु लेहु, बिषम जुर जरी आइ सुदरसन देहु ज्याइयैं।

नगु = रत्न। बिषम जुर = (१) कठिन ज्वाला (२) विषम ज्वर, तपे-दिक की बीमारी। सुदरसनु = (१) सुन्दर दर्शन (२) सुदर्शन का अर्क।

इस नष्ट होते हुए रत्न की रक्षा कर (अनमोल नायिका को मरने से