पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बिहारी-सतसई
२०८
 

हौं ही बौरी बिरह-बस कै बौरौ सब गाँउ।
कहा जानि ए कहत हैं ससिहिं सीत-कर नाँउ॥५२०॥

अन्वय—बिरह-बस हौं ही बौरी कै सब गाँउ बौरौ, कहा जानि ए ससिहिं सीत-कर नाँउ कहत हैं।

हौं ही = मैं ही। बौरी = पगली। ससिहिं = चन्द्रमा का। सीत-कर = शीतल किरणोंवाला, शीतरश्मि, चन्द्रमा। नाँउ = नाम।

विरह के कारण मैं ही पगली हो गई हूँ, या सारा गाँव ही पागल हो गया है। न मालूम क्या जानकर लोग (ऐसे झुलसानेवाले) चन्द्रमा का नाम शीत-कर कहते हैं।

सोवत-जागत सपन-बस रस रिस चैन कुचैन।
सुरति स्यामघन की सुरति बिसरैं हूँ बिसरैन॥५२१॥

अन्वय—सोवत-जागत सपन-बस रस रिस चैन कुचैन, स्यामघन की सुरति सुरति बिसरैं हूँ न बिसरै।

रस = प्रेम। रिस = क्रोध। सुरति = सु + रति = सुन्दर प्रीति। सुरति = स्मृति, याद। बिसरैं हूँ = विस्मृत करने या भुलाने से भी।

सोते, जागते और सपने में, स्नेह, क्रोध, सुख और दुःख में—सभी अवस्थाओं और सभी भावों में—घनश्याम (श्रीकृष्ण) के प्रेम की स्मृति भुलाये नहीं भूलती।

(सो॰) कौड़ा आँसू-बूँद, कसि साँकर बरुनी सजल।
कीन्हे बदन निमूँद, दृग-मलिंग डारे रहत॥५२२॥

अन्वय—आँसू-बूँद कौड़ा, सजल बरुनी साँकर कसि, बदन निमूँद कीन्हे, दृग-मलिंग डारे रहत।

कोड़ा = कौड़ियों की माला। साँकर = जंजीर। बरुनी = पपनी, पलक के बाल। सजल = अश्रुयुक्त। बदन = मुख। निमूँद = खुला हुआ। मलिंग = फकीर। डारे रहत = पड़े रहते हैं।

आँसुओं की बूँदों को कौड़ियों की माना और सजल बरुनी को (अपनी