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बिहारी-सतसई
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ही औरै-सी ह्वै गई टरी औधि कैं नाम।
दूजै कै डारी खरी बौरी बौरैं आम ॥५२९॥

अन्वय—टरी औधि कैं नाम ही औरै-सी ह्वै गई, दूजै बौरैं आम खरी बौरी कैं डारी।

ही=हृदय। औधि=वादा, आने की तारीख। दूजैं=दूसरे। खरी=अधिक, पूरी। बौरी=पगली। बौरैं=मँजराये हुए।

(एक तो) टली हुई अवधि के नाम से ही (यह सुनते ही कि प्रीतम अपने किये हुए वादे पर नहीं आयँगे) उसका हृदय कुछ और ही प्रकार का (उन्मना) हो गया था, दूसरे इन मँजराये हुए आमों ने उसे पूरी पगली बना डाला—(आम की मंजरी देखते ही वह एकदम पगली हो गई)।

भौ यह ऐसौई समौ जहाँ सुखद दुखु देत।
चैत-चाँद की चाँदनी डारति किए अचेत ॥५३०॥

अन्वय—यह ऐसौई समौ भौ जहाँ सुखद दुखु देत, चैत-चाँद की चाँदनी अचेत किए डारति।

भौ=हो गया। ऐसौई=ऐसा ही। समौ=समय, जमाना। अचेत किए डारत=बेहोश किये डालती है।

यह ऐसा ही (बुरा) समय आ गया है कि जहाँ सुख देनेवाला भी दुःख ही देता है। (देखो न, सखी!) चैत के चन्द्रमा की (सुखद) चाँदनी भी (इस विरहावस्था में) बेहोश किये डालती है।

नोट—"अफ़मुर्दा दिल के वास्ते क्या चाँदनी का लुत्फ।
लिपटा पड़ा है मुर्दा-सा मानो कफन के साथ॥"
{{Larger|गिनती गनिबे तैं रहे छत हूँ अछत समान।
अब अलि ए तिथि औम लौं परै रहै तन प्रान ॥५३१॥}

अन्वय—गिनती गनिबे तैं रहे छत हूँ अछत समान। अलि अब ए प्रान औम तिथि लौं तन परै रहै।

छत=रहना। अछत=न रहना। अलि=सखी। औम तिथि=अवम तिथि=क्षय-तिथि—चन्द्रमा के अनुसार महीने की गिनती करने से बीच-बीच