पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२३७

विकिस्रोत से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भेटि। २१७ सटीक : बेनीपुरी (हाथ की ज्वाजा से) नीचे झुलसी हुई, (आँखों के आँसुओं से मांगी होने के कारण) ऊपर गली हुई, और काजल के जल से छिड़की हुई (काळे दाग से भरी हुई) विना लिखी (प्रियतमा की) सादी चिट्ठी में ही प्रीतम ने विरह का रोग पढ़ लिया-(प्रीतम जान गया कि प्रियतमा विरह से जल रही है और आँसू बहा रही है।) कर लै चूमि चढ़ाइ सिर उर लगाइ भुज लहि पाती पिय की लखति बाँचति धरति समेटि ।। ५४२ ॥ अन्वय-पिय की पाती लहि कर ले चूमि सिर चढाइ लखति उर लगाइ भुज मटि बाँचति समेटि धरति । कर =हाथ । उर = हृदय । भुज भेटि=आलिंगन कर । पिय =प्रीतम । धरति समेटि=मोड़कर वा तह लगाकर यत्न से रखती है। बाँचति-पढ़ती है। (नायिका) प्रीतम की पाती पाकर उसे हाथ में लेकर, चूमकर, सिर पर चढ़ाकर देखती है और छाती से लगाकर, तथा (भुजाओं से) आलिंगन कर (बार-बार ) पढ़ती और ममेटकर रखती है। मृगनैनी दृग की फरक उर उछाह नन फूल । विनही पिय आगम उमगि पलटन लगी दुकूल ॥ ५४३ ॥ अन्वय-दृग की फरक मृगनेनी उर उछाह तन फूल, बिनही पिय आगम उगि दुकूल पलटन लगी। उछाह = उत्साह । आगम=आगमन, आना । उमगि= उमंग में आकर। पलटन लगी =बदलने लगी । दुकूल =रेशमी साड़ी, चीर। आँख के फड़कते ही मृगनेनी ( नायिका ) का हृदय उत्साह से भर गया, और शरीर (श्रानन्द से ) फूल उठा, तथा विना प्रीतम के आये ही ( अपने शुभ शकुन को सोलह-श्राने सत्य समन) उमंग में आकर माड़ी बदलने लगी। नोट - स्त्रियों के लिए बाई आँख का फड़कना शुभ शकुन है। अतः नायिका ने अपनी बाई आँख के फड़कते ही प्रेमावेश के कारण समझ लिया कि अाज प्रीतम अवश्य आवेंगे, अतः बन-ठनकर मिलने को तैयार होने लगी। उत्कंठा की हद है!