पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२३७

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सटीक : बेनीपुरी
 

(हाथ की ज्वाला से) नीचे झुलसी हुई, (आँखों के आँसुओं से भींगी होने के कारण) ऊपर गली हुई, और काजल के जल से छिड़की हुई (काले दाग से भरी हुई) बिना लिखी (प्रियतमा की) सादी चिट्ठी में ही प्रीतम ने बिरह का रोग पढ़ लिया—(प्रीतम जान गया कि प्रियतमा विरह से जल रही है और आँसू बहा रही है।)

कर लै चूमि चढ़ाइ सिर उर लगाइ भुज भेंटि।
लहि पाती पिय की लखति बाँचति धरति समेटि ॥५४२॥

अन्वय—पिय की पाती लहि कर लै चूमि सिर चढ़ाइ लखति उर लगाइ भुज भेंटि बाँचति समेटि धरति।

कर=हाथ। उर=हृदय। भुज भेंटि=आलिंगन कर। पिय=प्रीतम। धरति समेटि=मोड़कर वा तह लगाकर यत्न से रखती है। बाँचति=पढ़ती है।

(नायिका) प्रीतम की पाती पाकर उसे हाथ में लेकर, चूमकर, सिर पर चढ़ाकर देखती है और छाती से लगाकर, तथा (भुजाओं से) आलिंगन कर (बार-बार) पढ़ती और समेटकर रखती है।

मृगनैनी दृग की फरक उर उछाह तन फूल।
विनही पिय आगम उमगि पलटन लगी दुकूल ॥५४३॥

अन्वय—दृग की फरक मृगनैनी उर उछाह तन फूल, बिनही पिय आगम उमगि दुकूल पलटन लगी।

उछाह=उत्साह। आगम=आगमन, आना। उमगि=उमंग में आकर। पलटन लगी=बदलने लगी। दुकूल=रेशमी साड़ी, चीर।

आँख के फड़कते ही मृगनैनी (नायिका) का हृदय उत्साह से भर गया, और शरीर (आनन्द से) फूल उठा, तथा बिना प्रीतम के आये ही (अपने शुभ शकुन को सोलह-आने सत्य समन) उमंग में आकर साड़ी बदलने लगी।

नोट—स्त्रियों के लिए बाई आँख का फड़कना शुभ शकुन है। अतः नायिका ने अपनी बाई आँख के फड़कते ही प्रेमावेश के कारण समझ लिया कि आज प्रीतम अवश्य आवेंगे, अतः बन-ठनकर मिलने को तैयार होने लगी। उत्कंठा की हद है!