पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बिहारी-सतसई
२१८
 


बाम बाँहु फरकत मिलैं जौं हरि जीवनमूरि।
तौ तोहीं सौं भेंटिहौं राखि दाहिनी दूरि ॥५४४॥

अन्वय—बाम बाँहु फरकत जौं जीवनमूरि हरि मिलैं तौ दाहिनी दूरि राखि तोहीं सौं भेंटिहौं।

बाम=बाई। बाँहु=बाँह, भुजा। जीवनमूरि=प्राणाधार। भेंटिहौं=भेदूँगी, भुजा भरकर मिलूँगी। दूरि=अलग।

ऐ बाई भुजा! (तू फड़क रही है, सो) तेरे फड़कने से यदि प्राणाधार श्रीकृष्ण मिल जायँ—श्रीकृष्ण आज आ जायँ—तो दाहिनी भुजा को दूर रखकर मैं तुझीसे उनका आलिंगन करूँगी। (यही तेरे फड़कने का पुरस्कार है।)


कियौ सयानी सखिनु सौं नहिं सयानु यह भूल।
दुरै दुराई फूल लौं क्यों पिय-आगम-फूल ॥५४५॥

अन्वय—सखिनु सौं सयानी कियौ सयानु नहिं यह भूल, पिय-आगम-फूल लौं दुराई क्यों दुरै?

सयानी=चतुगई। सयानु=चतुगई। दुरै=छिपे। लौं=समान। पिय- आगम-फूल=प्रीतम के आगमन का उत्साह।

सखियों से की गई चतुराई (वास्तविक) चतुराई नहीं, वरन् यह भूल है। प्रीतम के आगमन का उत्साह (सुगंधित) फूल के समान छिपाने से कैसे छिप सकता है?


आयौ मीत बिदेस तैं काहू कह्यौ पुकारि।
सुनि हुलसीं बिहँसीं हँसीं दोऊ दुहुनु निहारि ॥५४६॥

अन्वय—काहू पुकारि कह्यौ, मीत बिदेस तैं आयौ, सुनि हुलसीं बिहँसीं दोऊ दुहुनु निहारि हँसीं।

मीत=मित्र=प्यारा, प्रीतम। काहू=किसीने। हुलसीं=आनन्दित हुई। बिहँसीं=मुस्कुराई। दुहुनु=दानों को। निहारि=देखकर।

किसीने पुकारकर कहा कि प्रीतम विदेश से आ गया। यह सुनकर आनन्दित हुई, मुस्कुराई और दोनों (नायिकाएँ) दोनों को देखकर हँस पड़ीं।

नोट—दोनों नायिकाएँ एक ही नायक से प्रेम करती थीं। किन्तु दोनों का