पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२४

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बिहारी सतसई
 

सीस-मुकुट कटि-काछनी कर-मुरली उर-माल ।
इहिं बानक मो मन बसो सदा बिहारीलाल ॥२॥

अन्वय-सीस मुकुट, कटि काछनी, कर मुरली, उर माल -बिहारीलाल इहि बानक मो मन सदा बसो ।

कटि-कमर । बानक = बाना, सजधज । बिहारीलाल =भगवान् कृष्ण । सिर पर ( मोर) मुकुट, कमर में (पीताम्बर की) काछनी, हाथ में मुरली और हृदय पर ( मोती की ) माला-हे बिहारीलाल, इस बाने से- इस सजधज से-मेरे मन में सदा वास करो ।

मूरति स्याम की अति अदभुत गति जोइ ।
बसति सुचित अंतर तऊ प्रतिबिम्बित जग होइ ॥३॥

अन्वय-स्याम की मोहनि मूरति गति अति अदभुत जोइ । बसति सुचित अंतर, तऊ प्रतिबिम्बित जग होइ ।

जोइ = देखना । सुचित = निर्मल चित्त, स्वच्छ हृदय । अंतर = भीतर । प्रतिबिम्बित = झलकती है ।

श्रीकृष्ण की मोहिनी मूर्ति की गति बड़ी अद्भुत देखी जाती है । वह (मूर्ति ) रहती ( तो) है स्वच्छ हृदय के भीतर, पर उसकी झलक दीख पड़ती है सारे संसार में!

तजि तीरथ हरि-राधिका-तन-दुति करि अनुराग ।
जिहिं ब्रज-केलि निकुंज-मग पग-पग होत प्रयाग ॥ ४॥

अन्वय-तीरथ तजि हरि-राधिका-तन-दुति अनुराग करि । जिहिं ब्रज-केलि निकुंज-मग पग-पग प्रयाग होत ।

ब्रज-केलि = ब्रजमण्डल की लीलाएँ। निकुंज-मग=कुंजों के बीच का रास्ता । प्रयाग= तीर्थराज ।। नकुंज=लताओं के आपस में मिलकर तन जाने से उनके नीचे जो रिक्त स्थान बन जाते हैं, उन्हें निकुंज वा कुंज कहते हैं, लता-वितान ।

तीर्थों में भटकना छोड़कर उन श्रीकृष्ण और राधिका के शरीर की छटा से प्रेम करो, जिनकी व्रज में की गई क्रीडाओं से कुंजों के रास्ते पग-पग में प्रयाग