पुहुप=फूल। पराग=फूल की धूल। पट=वस्त्र। सेद=स्वेद=पसीना। मकरंद=फूल का रस। नवोढ़ नारि=नवयौवना स्त्री, जो यौवन-मद-मत्त या स्तन-भार-नम्र होकर इठलाती (मन्द-मन्द) चलती है। लौं=समान। वायु=हवा।
फूलों के पराग-रूपी वस्त्र से लिपटी हुई (आच्छादित) और मकरंद-रूपी पसीने से सनी हुई (लिप्त), नवयुवती स्त्री के समान, सुख देनेवाली वायु मंद-मंद गति से आ रही है।
रुक्यौ साँकरैं कुंज-मग करतु झाँझि भकुरातु।
मंद-मंद मारुत-तुरँगु खूदतु आवतु जातु॥५९४॥
अन्वय—मारुत-तुरँगु कुंज साँकरैं मग रुक्यौ झाँझि करतु झकुरातु मंद-मंद खूँदतु आवतु जातु।
साँकरें=तंग। कुंज-मग=कुंज के रास्ते। करत झाँझि=हिनहिनाता हुआ। झकुरातु=झोंके (वेग) से चलता हुआ। मारुत-तुरँगु=पवन-रूपी घोड़ा। खूँदतु=खूँदी (जमैती) करता हुआ।
पवन-रूपी घोड़ा कुंज के तंग रास्ते में रुकता, हिनहिनाता (शब्द करता) और झोंके से आता हुआ, तथा मंद-मंद गति से जमैती करता (ठुमुक चाल चलता) हुआ, आता और जाता है।
कहति न देवर की कुबत कुलतिय कलह डराति।
पंजर-गत मंजार ढिग सुक लौं सूकति जाति॥५९५॥
अन्वय—देवर की कुबत कहांत न कुलतिय कलह डराति, मंजार ढिग पंजर-गत सुक लौं सूकति जाति।
कुबत=खराब बात, शरारत, छेड़छाड़। पंजर-गत=पिंजड़े में बन्द। मंजार=मार्जार=बिल्ली। सुक=शुक=सुग्गा, तोता।
(अपने पर आसक्त हुए) देवर की शरारत किसीसे कहती नहीं है (क्योंकि) कुलवधू (होने के कारण) झगड़े से डरती है—(बात प्रकट होते ही घर में कलह मचेगा, इस डर से वह देवर की छेड़खानियों की चर्चा नहीं करती)।