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सटीक : बेनीपुरी
 

बिल्ली के पास रक्खे हुए पिंजड़े में बन्द सुग्गे के समान (इस अप्रतिष्ठा के दुःख से वह) सूखती जाती है।

नोट—यहाँ स्त्री सुग्गा है, कलह का डर पिंजड़ा है और देवर (पति का छोटा भाई) बिल्ली है। ऊपर से सतीत्त्व-रक्षा की चिंता भी है।

पहुला-हारु हियैं लसै सन की बेंदी भाल।
राखति खेत खरे-खरे खरे उरोजनु बाल॥५९६॥

अन्वय—पहुला-हारु हियैं लसै सन की बेंदी भाल, खरे उरोजनु बाल खरे-खरे खेत राखति।

पहुला=प्रफुला=कुँई, कुमुद, काँच के छोटे-छोटे दाने। लसै=शोभता है। सन=सनई, जिसके फूल की टिकुली देहाती स्त्रियाँ पहनती हैं। खरे-खरे=खड़ी-खड़ी। खरे=खड़े (तने) या ऊँचे उठे हुए। उरोजन=कुचों (स्तनों) से।

कुमुद की माला हृदय में शोम रही है, और सन के फूल की बेंदी ललाट पर। (इस प्रकार) तने हुए स्तनोंवाली वह युवती खड़ी-खड़ी (अपने) खेत की रखवाली कर रही है।

नोट—पीनस्तनी ग्रामीण नायिका का वर्णन है। नीचे के दो दोहों में भी ग्रामीण नायिका का ही वर्णन मिलेगा।

गोरी गदकारी परैं हँसत कपोलनु गाड़।
कैसी लसति गँवारि यह सुनकिरवा की आड़॥५९७॥

अन्वय—गोरी गदकारी हँसत कपोलनु गाड़ परैं, सुनकिरवा की आड़ यह गँवारि कैसी लसति।

गदकारी=गुलथुल, जिसके शरीर पर इतना मांस गठा हुआ हो कि देह गुलगुल जान पड़े। हँसते=हँसते समय। कपोलनु=गालों पर। गाड़=गढ़ा। लसति =शोभती है। सुनकिरवा=स्वर्णकीट—एक प्रकार का सुनहला कीड़ा, जिसके पंख बड़े चमकीले होते हैं, जिन्हें (कहीं टूट पड़ा पाकर) ग्रामीण युवतियाँ टिकुली की तरह साटती हैं। आड़=लम्बा टीका।

गोरी है, गुलथुल है, (फलतः) हँसते समय उसके गालों में गढ़े पड़