बिहारी-सतसई २४२ बिहँसति सकुचति-सी दिऐं कुच आँचर बिच बाँह । भीजै पट तट कौं चली न्हाइ सरोवर माँह ।। ६०२ ।। अन्वय-सरोवर माँह न्हाइ बिहँसति सकुचति-सी, बाँह आँचर विच दिएँ मी पट तट कौं चली। कुच=स्तन । बाँह = बाँह, हाथ । पटकपड़ा । तट = किनारा । न्हाइ = स्नान कर । सरोवर = पोखरा । सरोवर में स्नान कर मुस्कुराती और सकुचाती हुई-सी अपने हाथों को कुचों और अंचल के बीच में दिये हुए गीले कपड़े पहने ही तट की ओर चली। नोट-“कुच आँचर विच बाँह" में स्वाभाविकता और रस-मर्मशता खब है। सहृदयता से पूछिए कि कहीं किसी घाट पर परखा है । मुँह धोवति ऍड़ी घसति हँसति अनगवति तीर । धसति न इन्दीवर-नयनि कालिंदी के नीर ॥ ६०३ ।। अन्वय-तीर मुँह धोवति ऍड़ी घसति हँसति अनगवति इन्दीबर-नयनि कालिन्दी कै नीर न धसति । अनगवति =जान-बूझकर देर करती है । इन्दीबर = नील कमल । इन्दीबर- नयनि = कमलनयनी । कालिन्दो = यमुना । (वह कामिनी) घाट ही पर (श्रीकृष्ण को देखकर ) मुँह धोती, ऍड़ी घिसती, हँसती और जान-बूझकर (नहाने में ) विलंब करती है; (किन्तु) वह कमल-लोचना, यमुना के पानी में नहीं पैठती। न्हाइ पहिरि पटु डटि कियौ बेंदी मिसि परनाम् । दृग चलाइ घर कौं चली बिदा किए घनस्यामु ।। ६०४ ।। अन्वय-न्हाइ पटु पहिरि डटि बेंदी मिसि परनामु कियौ, दृग चलाइ घनस्यामु बिदा किए घर कौं चली। पट = वस्त्र । मिसि: = बहाना । दृग चलाइ = आँखों के इशारे कर । स्नान कर, कपड़ा पहन, सज्जित हो, बेंदी लगाने के बहाने प्रणाम किया- बंदी लगाते समय मस्तक से हाथ छुलाकर इशारे से प्रणाम किया। फिर, आँखों के इशारे से श्रीकृष्ण को बिदा कर स्वयं भी घर को चली।