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बिहारी-सतसई
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बिहँसति सकुचति-सी दिऐं कुच आँचर बिच बाँह।
भीजैं पट तट कौं चली न्हाइ सरोवर माँह॥६०२॥

अन्वय—सरोवर माँह न्हाइ बिहँसति सकुचति-सी, बाँह आँचर बिच दिऐं भीजैं पट तट कौं चली।

कुच=स्तन। बाँह=बाँह, हाथ। पट=कपड़ा। तट=किनारा। न्हाइ=स्नान कर। सरोवर=पोखरा।

सरोवर में स्नान कर मुस्कुराती और सकुचाती हुई-सी अपने हाथों को कुचों और अंचल के बीच में दिये हुए गीले कपड़े पहने ही तट की ओर चली।

नोट—"कुच आँचर बिच बाँह" में स्वाभाविकता और रस-मर्मशता खूब है। सहृदयता से पूछिए कि कहीं किसी घाट पर परखा है।

मुँह धोवति एँड़ी घसति हँसति अनगवति तीर।
धसति न इन्दीबर-नयनि कालिंदी के नीर॥६०३॥

अन्वय—तीर मुँह धोवति एँड़ी घसति हँसति अनगवति इन्दीबर-नयनि कालिन्दी कै नीर न धसति।

अनगवति=जान-बूझकर देर करती है। इन्दीबर=नील कमल। इन्दीबर-नयनि=कमलनयनी। कालिन्दी=यमुना।

(वह कामिनी) घाट ही पर (श्रीकृष्ण को देखकर) मुँह धोती, एँड़ी घिसती, हँसती और जान-बूझकर (नहाने में) विलंब करती है; (किन्तु) वह कमल-लोचना, यमुना के पानी में नहीं पैठती।

न्हाइ पहिरि पटु डटि कियौ बेंदी मिसि परनामु।
दृग चलाइ घर कौं चली बिदा किए घनस्यामु॥६०४॥

अन्वय—न्हाइ पटु पहिरि डटि बेंदी मिसि परनामु कियौ, दृग चलाइ घनस्यामु बिदा किए घर कौं चली।

पट=वस्त्र। मिसि=बहाना। दृग चलाइ=आँखों के इशारे कर।

स्नान कर, कपड़ा पहन, सज्जित हो, बेंदी लगाने के बहाने प्रणाम किया—बेंदी लगाते समय मस्तक से हाथ छुलाकर इशारे से प्रणाम किया। फिर, आँखों के इशारे से श्रीकृष्ण को बिदा कर स्वयं भी घर को चली।