पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४५
सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—देवर जु फूल हने सु-सु अँग हरषि फूलि उठे सखिनु भूलि देह-ददोरनु औषधि हँसी करति।

हने=मारना। देह-ददोरनु=देह में पड़े हुए चोट के चकत्ते।

देवर ने जिन-जिन अंगों में फूल से मारा, सो (उस फूल के लगते ही भौजाई के) वह-वह अंग आनन्द से फूल उठे, (क्योंकि देवर से उसका गुप्त 'प्रेम' था) किन्तु सखियाँ भूल से (उस सूजन अथवा पुलक को) देह के दोदरे समझकर दवा करने लगीं। (यह देख मावज) हँस पड़ी (कि सखियाँ भी कैसी मूर्ख हैं जो मेरे प्रेम से फूले हुए अंग को फूल की चोट के दोदरे समझ रही हैं!)

चलत जु तिय हिय पिय दई नख-रेखानु खरौंट।
सूकन देत न सरसई खोंटि-खोंटि खत खौंट॥६१०॥

अन्वय—चलत जु तिय हिय पिय नख-रेखानु खरौंट दई खत खौंट खोंटि-खोंटि सरसई सूकन न देत।

नख-रेखानु=नहँ की छिछोर से बनी रेखाएँ। खरौंट=खरोंच, छिछोर, चमड़ा छिल जाने से बना हुआ घाव। सरसई=ताजगी, गीलापन। खत=घाव। खौंट=खोंटी, घाव के ऊपर का सूखा हुआ भाग।

चलते समय में जो प्रिया की छाती में प्रीतम ने नखक्षत की रेखा दे दी—चलने समय प्रीतम द्वारा मर्दित किये जाने पर प्रिया के कुचों में जो नहँ की छिछोर लग गई—सो उस घाव की खोंटी को (वह नायिका) खोंट-खोंटकर उसकी सरसता सूखने नहीं देनी—घाव को सदा ताजा (हरा) बनाये रखती है (ताकि इससे भी प्रीतम सदा याद रहें।)

पार्यौ सोरु सुहाग कौ इनु बिनु हीं पिय-नेह।
उनदौंही अँखियाँ ककै कै अलसौंहीं देह॥६११॥

अन्वय—उनदौंहीं अँखियाँ कै अलसौंहीं देह ककौ इनु बिनु हीं पिय-नेह सुहाग कौ सोरु पार्यो।

सौरु पार्यौ=शोर या शुहरत मचा दी है, ख्याति फैला दी है। सुहाग=