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बिहारी-सतसई
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सौभाग्य। बिनु हीं पिय-नेह=पति-प्रेम के बिना ही। उनदौंहीं=उनींदी, ऊँघती हुई। ककै=करके। कै=या। अलसौंहीं=अलसाई हुई।

ऊँघी हुई आँखें या अलसाई हुई देह बना-बनाकर इस स्त्री ने बिना प्रियतम के ही अपने सुहाग की ख्याति फैला दी है।

नोट—सखी नायिका से कह रही है कि यद्यपि तुम्हारा प्रीतम तुम्हारी सौत पर अनुरक्त नहीं, तो भी वह उनींदी आँखें, अलसाई देह आदि चेष्टाएँ दिखाकर जनाती है कि सदा नायक के साथ रति-क्रीड़ा में जगी रहती है।

बहु धन लै अहसानु कै पारो देत सराहि।
बैंद-बधू हँसि भेद सौं रही नाह-मुँह चाहि॥६१२॥

अन्वय—बहु धन लै अहसानु कै पारो सराहि देत बैद-बधू भेद सौं हँसि नाह-मुँह चाहि रही।

अहसानु कै=अपनी मिहरबानी या उपकार जताकर। पारो=पारे की भस्म, कामोद्दीपक रसायन। भेद सौं=मर्म के साथ, रहस्यपूर्ण। नाह=पति। चाहि =देखना।

बहुत धन लेकर, बड़े अहसान के साथ, खूब सराहकर पारा देता है (कि इसके खाते ही तुम्हारा नपुंसकत्व दूर हो जायगा।) यह देख वैद्यजी की स्त्री रहस्यभरी हँसी हँसकर अपने (नपुंसक) पति (वैद्यजी) का मुख देखने लगी (कि आप तो स्वयं नपुंसक हैं, फिर यही दवा खाकर आप क्यों नहीं पुंसत्व प्राप्त करते? लोगों को व्यर्थ क्यों ठग रहे हैं!)

ऊँचै चितै सराहियतु गिरह कबूतरु लेतु।
झलकित दृग मुलकित बदनु तनु पुलकित किहिं हेतु॥६१३॥

अन्वय—ऊँचै चितै गिरह लेतु कबूतरु सराहियतु, किहिं हेतु दृग झलकित बदनु मुजकित तनु पुलकित।

ऊँचे=ऊपर की ओर। चितै=देखकर। मुलकित=हँसती है। पुलकित=रोमांचित होती है।

उपर की ओर देखकर गिरह मारते हुए कबूतर को सराह रही हो। किन्तु किसलिए तुम्हारी आँखें चमक रही हैं, मुख हँस रहा है और शरीर रोमांचित हो