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सटीक : बेनीपुरी
 

चटक=चटकीलापन। सज्जन=सदाचारी, सहृदय। बरु=भले ही। चोल=मजीठ। चीर=वस्त्र।

सज्जनों का गम्भीर प्रेम घटने पर भी अपनी चटक नहीं छोड़ता—कम हो जाने पर भी उसकी मधुरिमा नष्ट नहीं होती। जिस प्रकार मँजीठ के रंग में रँगा हुआ वस्त्र फट भले ही जाय, किन्तु फीका नहीं पड़ता।

सम्पति केस सुदेस नर नवत दुहुनि इक बानि।
विभव सतर कुच नीच नर नरम बिभव की हानि॥६२०॥

अन्वय—सम्पति केस सुदेस नर नवत दुहुनि इक बानि, कुच नीच नर बिभव सतर बिभव की हानि नरम।

सम्पति=धन, वृद्धि, ऐश्वर्य। सुदेस नर=सजन पुरुष, भलामानस। बानि=आदत। बिभव=विभव=धन, यौवन। सतर=ऐंठ।

ऐश्वर्य पाकर—बढ़ने पर—केश और सज्जन पुरुष नरम पड़ जाते हैं, इन दोनों की एक आदत है। कुच और नीच आदमी विभव पाकर ऐंठने लगते हैं, और विमव की हानि होते ही नरम हो जाते हैं।

न ए बिससियहि लखि नए दुर्जन दुसह सुभाइ।
आँटैं परि प्राननु हरैं काँटैं लौं लगि पाइ॥६२१॥

अन्वय—ए दुसह सुभाइ दुर्जन नए लखि बिसमियहि न, आँटैं परि काँटैं लौं पाइ लगि प्राननु हरैं।

बिससियहि=विश्वास कीजिए। नए=नम्र बने हुए। आँटैं परि=दाँव लगने पर, घात पाने पर। पाइ=परै।

इन दुःसह स्वभाववाले दुर्जनों को नम्र होते देखकर विश्वास न कीजिए। घात लगने पर ये काँटे के समान पैर में लगकर प्राण ही ले लेते हैं।

नोट—नवनि नीच कै अति दुखदाई।
जिमि अंकुस, धनु, उरग, बिलाई॥—तुलसीदास
जेती सम्पति कृपन कैं तेती समति जोर।
बढ़त जात ज्यौं-ज्यौं उरज त्यौं-त्यौं होत कठोर॥६२२॥