अन्वय—कृपन कैं सम्पति जेती तेती सूमति जोर, उरज ज्यौं-ज्यौं बढ़त जात त्यौं-त्यौं कठोर होत।
कृपन=सूम, शठ। सूमति=सूमड़ापन, शठता। उरज=कुच।
सूमड़े आदमी का धन जितना ही बढ़ता है, उतनी ही उसकी शठता भी जोर पकड़ती जाती है। (जिस प्रकार नवयौवना के) कुच ज्यों-ज्यों बढ़ते हैं, त्यों-त्यों कठोर होते जाते हैं।
नीच हियैं हुलसे रहैं गहे गेंद के पोत।
ज्यौं-ज्यौं माथै मारियत त्यौं-त्यौं ऊँचे होत॥६२३॥
अन्वय—गेंद के पोत गहे नीच हियैं हुलसे रहैं, ज्यौं-ज्यौं माथै मारियत त्यौं-त्यौं ऊँचे होत।
हियैं=हृदय। हुलसे रहैं=हुलास से भरा रहता है, उत्साह से भरा हुआ। पोत=ढंग, स्वभाव।
गेंद का ढंग पकड़े हुए नीच आदमी का हृदय (अपमानित किये जाने पर भी) सदा हुलास से भरा हो रहता है। (जिस प्रकार गेंद को) ज्यों-ज्यों माथे में मारिए, त्यों-त्यों वह ऊँची ही होती है।
नोट—कमीना सीनः डट फुटबाल के फैसन पे चलता है।
जो सिर पर लात मारे और ऊपर को उछलता है॥—प्रीतम
कैसे छोटे नरनु तैं सरत बड़नु के काम।
मढ़्यौ दमामौ जातु क्यौं कहि चूहे कैं चाम॥६२४॥
अन्वय—छोटे नरनु तैं बड़नु के काम कैसें सरत। कहि चूहे कैं चाम दमामौ क्यौं मढ़्यौ जातु।
छोटे नरनु=क्षुद्र मनुष्यों से। सरत=सिद्ध या पूरा होता है। दमामौ=नगाड़ा। चाम-चमड़ा।
ओछे आदमियों से—छुटहों से—बड़े आदमी का काम कैसे सध सकता है—कमी पूरा नहीं होता। कहो, चूहे के चाम से नगाड़ा कैसे मढ़ा (छवाया) जा सकता है? कभी नहीं।