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बिहारी-सतसई
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पाकर चलते हैं। हाँ, जयसिंह से भेंट होने के लिए भाग्य अच्छा होना चाहिए। (उनसे भेंट ही होना कठिन है, यदि भेंट हो गई, तो फिर धन का क्या पूछना।)

यौं दल काढ़े बलख तैं तैं जयसाहि भुवाल।
उदर अघासुर कैं परैं ज्यौं हरि गाइ गुवाल॥६२८॥

अन्वय—जयसाहि भुवाल, बलख तैं दल तैं यौं काढ़े ज्यौं अघासुर कैं उदर परैं गाइ गुवाल हरि।

दल=सेना। बलख=अफगानिस्तान का एक प्रान्त। भुवाल=भूपाल=राजा। उदर=पेट। अघासुर=कंस का साथी एक राक्षस, जो सर्प के रूप में आकर व्रज के बहुत-से ग्वालों और गौओं को निगल गया था।

हे जयसिंह महाराज, बलख-देश से (शत्रुओं के बीच में फँसी हुई) अपनी सेना को आपने यों निकाल लिया, जिस प्रकार अघासुर के पेट में पड़ी हुई गौओं और ग्वालों को श्रीकृष्ण ने (निकाल लिया था)।

अनी बड़ी उमड़ी लखैं असिबाहक भट भूप।
मंगलु करि मान्यौ हियैं भो मुँहु मंगलु-रूप॥६२९॥

अन्वय—बड़ी उमड़ी अनी असिबाहक लखैं भट भूप हियैं मंगलु करि मान्यौ मुँहु मगलु-रूप भी।

अनी=सेना। असिबाहक-तलवार चलानेवाला, तलवारधारी। भट=शूर-वीर। मगलु=कुशल, आनन्द। मंगलु=मंगलग्रह, जिसका रंग लाल माना गया है। रूप=सदृश।

(शत्रुओं की) बड़ी उमड़ी हुई सेना को देखकर तलवारधारी शूर-वीर राजा ने उसे हृदय में मंगल के समान जाना—आनन्ददायक समझा—और उनका मुँह (आनन्द और क्रोध से) मंगल (ग्रह) के समान (लाल) हो गया।

रहति न रन जयसाहि-मुख लखि लाखनु की फौज।
जाँचि निराखरऊँ चलैं लै लाखनु की मौज॥६३०॥

अन्वय—जयसाहि-मुख लखि लाखनु की फौज रन न रहति जाँचि निराखरऊँ लाखनु की मौज लै चलैं।