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बिहारी-सतसई
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सुमति=सुन्दर मति, सुबुद्धि। कुमति=दुष्ट बुद्धि। धंध=जंजाल, फेर। मेलि=मिलाकर।

जो कुमति के धंधे में पड़ा रहता है—जिसे खराब काम करने की आदतसी लग जाती है, वह सत्संगति से मी सुमति नहीं पाता—नहीं सुधरता। कपूर में मिलाकर भले ही रक्खो, किन्तु हींग सुगंधित नहीं हो सकती।


पर-तिय-दोषु पुरान सुनि लखी मुलकि सुखदानि।
कसु करि राखी मिस्र हूँ मुँह आई मुसकानि॥६३९॥

अन्वय—पर-तिय-दोषु पुरान सुनि सुखदानि मुलकि लखी, मिस्र हूँ मुँह आई मुसकानि कसु करि राखी।

पर-तिय-दोषु=पर-स्त्री-गमन का दोष। मुलकि=हँसकर, मुस्कुराकर। मिस्र=कथा बाँचनेवाले पौराणिक या व्यास।

पर-स्त्री-प्रसंग का दोष पुराण में सुनकर उस सुखदायिनी स्त्री ने (जो पौराणिकजी की परकीया थी, और कथा सुनने भी आई थी) हँसकर (पौराणिकजी की ओर) देखा (कि दूसरों को तो उपदेश देते हो, और स्वयं मुझसे फँसे हो!) और, पौराणिक मिश्रजी ने भी (अपनी प्रेमिका की हँसी देखकर) अपने मुँह तक आई मुस्कुराहट को बलपूर्वक रोक रक्खा (कि कहीं लोग ताड़ न जायँ!)


सब हँसत करतारि दैं नागरता कैं नाँव।
गयौ गरबु गुन कौ सरबु गएँ गँवारैं गाँव॥६४०॥

अन्वय—नागरता कैं नाँव सबै करतारि दै हँसत, गँवारैं गाँव गएँ गुन कौ सरबु गरबु गयौ।

(जहाँ) नागरिकता के नाम पर—नागरिक प्रवीणता के नाम पर—सब लोग ताली बजा-बजाकर हँसते हैं, (उस) गँवारों के गाँव में बसने से गुण का सारा गर्व जाता रहा!


फिरि-फिरि बिलखी ह्वै लखति फिरि-फिरि लेति उसाँसु।
साँई सिर कच सेत लौं बीत्यौ चुनति कपासु॥६४१॥