पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२७६

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बिहारी-सतसई २५६ . सुमति = सुन्दर मति, सुबुद्धि । कुमति दुष्ट बुद्धि । धंध=जंजाल, फेर । मेलि = मिलाकर। जो कुमति के धंधे में पड़ा रहता है-जिसे खराब काम करने की श्रादत- सी लग जाती है, वह सत्संगति से मी सुमति नहीं पाता-नहीं सुधरता । कपूर में मिलाकर भले ही रक्खो, किन्तु हींग सुगंधित नहीं हो सकती। पर-तिय-दोषु पुरान सुनि लखी मुलकि सुखदानि । कसु करि राखी मिस्र हूँ मुँह आई मुसकानि ।। ६३९ ॥ अन्वय-पर-तिय-दोषु पुरान सुनि सुखदानि मुलकि लखी, मिस्र हूँ मुँह भाई मुसकानि कसु करि राखी। पर-तिय-दोषु = पर-स्त्री-गमन का दोष । मुलकि = हँसकर, मुस्कुराकर । मिस्रः = कथा बाँचनेवाले पौराणिक या व्यास । पर-स्त्री-प्रसंग का दोष पुराण में सुनकर उस सुखदायिनी स्त्री ने ( जो पौराणिकजी की परकीया थी, और कथा सुनने मी पाई थी) हँसकर (पौरा- णिकजी की ओर) देखा (कि दूसरों को तो उपदेश देते हो, और स्वयं मुझसे फंसे हो !) और, पौराणिक मिश्रजी ने मी (अपनी प्रेमिका की हँसी देखकर ) अपने मुँह तक आई मुस्कुराहट को बलपूर्वक रोक रक्खा (कि कहीं लोग ताड़ जाय !) सब हँसत करतारि दे नागरता के नाँव । गयौ गरवु गुन को सरबु गएँ गँवारै गाँव ।। ६४० ॥ अन्वय-नागरता के नाँव सबै करतारि दै हँसत, गँवारे गाँव गएँ गुन को सरबु गरओ गयौ। (जहाँ) नागरिकता के नाम पर- -नागरिक प्रवीणता के नाम पर सब लोग ताली बजा-बजाकर हँसते हैं, (उस) गँवारों के गाँव में बसने से गुण का सारा गर्व जाता रहा! फिरि-फिरि बिलखी है लखति फिरि-फिरि लेति उसाँसु । साँई सिर कच सेत लौं बीत्यौ चुनति कपासु ॥ ६४१॥