पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२७७

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। , 66 २५७ सटीक : बेनीपुरो अन्वय-फिरि-फिरि बिलखी है लखति फिरि-फिरि उसाँसु लेति, बीत्यौ कपासु साँई सिर सेत कच लौं चुनति । बिलखो = व्याकुल । साँई =पति । कच = = केश, बाल । चुनति=चुनती या बीनती है । बीत्यौ = बीती हुई, उजड़ी हुई। बार-बार व्याकुल होकर देखती है, और बार-बार लम्बी साँसे लेती है- गरम आह भरती है ! यो उजड़ी हुई कपास को पति के सिर के उजले केश के समान चुनती है । (कपास के उजड़े हुए खेत की कपास चुनने में उसे उतना ही कष्ट होता है, जितना वृद्ध पति के सिर के उजले केश चुनने में नवयुवती पत्नी को होता है) नोट-कपास का खेत नायिका के गुप्त-मिलन का स्थान था। उसके उजड़ जाने पर उसे दुःख है । उजले केश के विषय में 'केशव' का कहना है- "केसब केसनि अस करी, जस अरिहू न कराहि; चन्द्रबदनि मृगलोचनी, बाबा कहि-कहि जाहिं।" नर की अरु नल-नीर की गति एकै करि जोइ । जतौ नीचौ है चलै तेती ऊँचौ होइ ॥ ६४२ ॥ अन्वय -नर की अरु नल-नीर की एक करि गति जोइ । जेतौ नीची है चले तेती ऊँचौ होइ। नल-नीर=नल का पानी। एकै करि = एक हो समान । गति =चाल । जोइ =देखी जाती है। आदमी की और नल के पानी की एक ही गति दीख पड़ती है। वे जितने ही नीचे होकर चलते हैं उतने ही ऊँचे होते हैं । (आदमी जितना ही नम्र होकर चलेगा, वह उतना ही अधिक उन्नति करेगा, और नल का पानी जितने नीचे से आयगा, उतना ही ऊपर चढ़ेगा।) बढ़त-बढ़त सम्पति-सलिलु मन-सरोज बढ़ि जाइ । घटत-घटत सु न फिरि घटै बरु समूल कुम्हिलाइ ।। ६४३ ॥ अन्वय-सम्मति-सलिलु बढ़त-बढ़त मन-सरोज बदि जाइ । घटत-घटत सु फिरि न घटै बरु समूल कुम्हिलाइ । .