पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२८

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बिहारी-सतसई
 

पावस = वर्षा ऋतु । नंदित = आनन्दित ।

बिना वर्षा ऋतु के अचानक ही वन में मोर नाच उठे ! जान पड़ता है, इस दिशा को नंद के लाडले (घनश्याम) ने आनन्दित किया है ।

नोट-श्रीकृष्ण का सघन-मेघ-सदृश श्यामल शरीर देखकर भ्रमवश एका-एक मोर नाच उठे थे ।

प्रलय करन बरषन लने जुरि जलधर इक साथ ।
सुरपति गरबु हरयो हरषि गिरिधर गिरिधर हाथ।। १२ ।।

अन्वय -जलधर इक साथ जुरि प्रलय करन बरषन लगे । गिरिधर हरषि गिरि हाथ धर सुरपति गरबु हर्यो ।

प्रलय करन = संसार को जलमग्न करने के लिए । जुरि = मिलकर । जलधर = मेघ । सुरपति = इन्द्र । गरब्बु (गर्व) = घमंड । गिरिधर कृष्ण । गिरि = पहाड़ । घर = घारण कर ।

सब मेघ एक साथ मिलकर प्रलय करने के लिए बरसने लगे । गोवद्धनधारी श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर-इसके लिए मन में कुछ भी दुःख न मानकर-(गोबर्द्धन ) पर्वत हाथ में धारण कर -उठाकर-इन्द्र का धमंड किया ।

डिगत पानि हिगुलात गिरि लखि सब ब्रज बेहाल ।
कंप किसोरो दरसिकै खरै लजाने लाल ॥ १३॥

अन्वय-पानि डिगत, गिरि डिगुल्लात, जखि सब व्रज बेहाल, किसोरी दरसिकै कंप (यह जानि ) जाल स्वरै लजाने ।

पानि = हाथ । डिगुलात = डगमगाना । वेहाल = विह्वल, वेचैन । कंप = थरथराहट । किसोरी = नवेली, राधिका | स्वरै = विशेष रूप से | लाल = कृष्ण ।

हाथ हिलता और पर्वत डगमगाता है-यह देखकर ब्रजवासी व्याकुल हो गये । राधिका के दर्शन करके (मेरे शरीर के ) कम्म के कारण ऐसा हुआ है- पर्वत हिला है (यह समझकर ) कृष्णजी खूब ही लजित हुए ।

नोट- इसी प्रसंग पर किसी कवि ने गजब का मजमून बाँधा है । देखिए, कवित्त-

मौहनि कमान तानि फिरति अवेली बधू टापै ए बिसिस्त्र कोर काजल ।