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बिहारी-सतसई
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चित्त में पितृघातक योग विचारकर—यह जानकर कि इस नक्षत्र में पुत्र उत्पन्न होने से पिता की मृत्यु होती है—अपना पुत्र होने पर भी (ज्योतिषीजी को) शोक हुआ। किन्तु पुनः जारज-योग समझकर—यह समझकर कि इस नक्षत्र में उत्पन्न होनेवाला लड़का दोगला होता है—ज्योतिषीजी हृदय से प्रसन्न हुए (कि यह मेरा पुत्र तो है नहीं, फिर मैं कैसे मरूँगा? मरेंगे तो वे, जिनसे मेरी स्त्री का गुप्त सम्बन्ध था!)


अरे परेखौ को करै तुँहीं बिलोकि बिचारि।
किहिं नर किहिं सर राखियै खरैं बढ़ैं परि पारि॥६५०॥

अन्वय—अरे को परेखौ करै तुँहीं बिचारि बिलोकि, किहिं नर किहिं सर खरैं बढ़ैं परि पारि राखियै।

परेखौ=परीक्षा। सर=तालाब। पारि=(१) बाँध (२) मर्यादा।

अजी, कौन परीक्षा करे? तुम्हीं विचार कर देखो, किस पुरुष ने और किस तालाब ने अत्यन्त बढ़ने पर अपनी मर्यादा—बाँध—की रक्षा की है? (तालाब में अत्यन्त जल होगा, वह उबल पड़ेगा, और आदमी को भी अधिक धन होगा, तो वह इतराता चलेगा।)


कनकु कनक तैं सौगुनौ मादकता अधिकार।
उहिं खाएँ बौराइ इहिं पाऐँ हीं बौराइ॥६५१॥

अन्वय—कनकु कनक तैं सौगुनौ अधिकाइ मादकता, उहिं खाएँ बौराइ इहिं पाऐं हीं बौराइ।

कनक=(१) धतूरा (२) सोना। मादकता=नशा। बौराई=बौराता है, बावला या पगला हो जाता है।

सोने में धतूरे से सौगुना अधिक नशा है! क्योंकि उसे (धतूरे को) खाने से (मनुष्य बौराता है) और इसे (सोने को केवल) पाने (मात्र) से ही बौराता है।

नोट—किन्तु मेरा कहना है कि 'कनक-कनक से सौगुनौ कनक-बरनि तन ताय। वा खाये वा पाय ते या देखे बौराय॥'