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बिहारी-सतसई
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नोट—नायक किसी दूसरी स्त्री पर आसक्त है। नायिका उसकी खूब निगरानी करती है। उससे लड़ती-झगड़ती है। इसपर सखी का कथन।


जिन दिन देखे वे कुसुम गई सु बीति बहार।
अब अलि रही गुलाब मैं अपत कँटीली डार॥६५५॥

अन्वय—जिन दिन वे कुसुम देखे सु बहार बीति गई, अलि अब गुलाब मैं अपत कँटीली डार रही।

कुसुम=फूल। सु=वह। बहार=(१) छटा (२) वसन्त। अलि=भौंरा। अपत=पत्र-रहित। कँटीली डार=काँटों से भरी डाल।

जिन दिनों तुमने वे (गुलाब के) फूल देखे थे, वह बहार तो बीत गई—वह वसन्त तो चला गया। अरे भौंरे! अब तो गुलाब में पत्र-रहित कँटीली डालियाँ ही रह गई हैं।


इहीं आस अटक्यौ रहतु अलि गुलाब कैं मूल।
ह्वैहैं फेरि बसंत-रितु इन डारनु वे फूल॥६५६॥

अन्वय—इहीं आस अलि गुलाब कैं मूल अटक्यौ रहतु, फेरि बसंत-रितु इन डारनु वे फूल ह्वैहैं।

अटक्यौ रहतु=टिका या अड़ा हुआ है। मूल=जड़। ह्वैहैं=होंगे।

इसी आशा से भौंरा गुलाब की जड़ में अटका हुआ है—उसकी 'अपत कँटीली डार' को से रहा है—कि पुनः वसन्त ऋतु में इन डालियों में वे ही (सुन्दर सुगन्धित) फूल होंगे।

नोट—यह दोहा पिछले दोहे के जवाब में लिखा हुआ मालूम पड़ता है। कैसा लासानी सवाल-जवाब है!


सरस कुसुम मँड़रातु अलि न झुकि झपटि लपटातु।
दरसत अति सुकुमारु तनु परसत मन न पत्यातु॥६५७॥

अन्वय—सरस कुसुम अलि मँड़रातु झुकि झपटि न लपटातु अति सुकुमारु तनु दरसत परसत मन न पत्यातु।

मँड़रातु=मँड़राता है, ऊपर चक्कर काटता है। दरसत=देखकर। मन न पत्यातु=मन नहीं पतियाता, तबीयत नहीं कबूल करती।