पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२८२

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भपत भौंरा । अरतः बिहारी सतसई २६२ नोट-नायक किसी दूसरी स्त्री पर आसक्त है। नायिका उसकी खब निगरानी करती है। उससे लड़ती-झगड़ती है । इसपर सखी का कथन । जिन दिन देखे वे कुसुम गई सु बीति बहार । अब अलि रही गुलाब मैं अपत कँटीली डार ॥ ६५५ ।। अन्वय-जिन दिन वे कुसुम देखे सु बहार बीति गई, अलि अब गुलाब मैं कँटीली डार रही। कुसुम = फूल । सु = वह । बहार = (१) छय (२) वसन्त । अलि = पत्र-रहित । कँटीली डार=काँटों से भरी डाल । जिन दिनों तुमने वे (गुलाब के ) फूल देखे थे, वह बहार तो बीत गई- वह वसन्त तो चला गया। अरे भौंरे ! अब तो गुलाब में पत्र-रहित कँटीली डालियाँ ही रह गई हैं। इहीं आस अटक्यौ रहतु अलि गुलाब के मूल । हैहैं फेरि बसंत-रितु इन डारनु वे फूल ।। ६५६ ॥ अन्वय-इहीं पास अलि गुलाब के अटक्यौ रहतु, फेरि बसंत-रितु इन डारनु वे फूल हैहैं। अटक्यौ रहतु = टिका या अड़ा हुआ है । मूल =जड़ । हहैं = होंगे। इसी आशा से भौंरा गुलाब की जड़ में अटका हुआ है-उसकी 'श्रपत कँटीली डार' को से रहा है -कि पुनः वसन्त ऋतु में इन डालियों में वे ही (सुन्दर सुगन्धित ) फूल होंगे। नोट- यह दोहा पिछले दोहे के जवाब में लिखा हुआ मालूम पड़ता है। कैसा लासानी सवाल-जवाब है ! सरस कुसुम मँडरातु अलि न झुकि झपटि लपटातु । दरसत अति सुकुमारु तनु परसत मन न पत्यातु ।। ६५७ ॥ अन्वय-सरस कुसुम अलि मँडरातु झुकि झपटि न लपटातु प्रति सुकुमारु तनु दरसत परसत मन न पत्यातु। मँडरातु = मँडराता है, ऊपर चक्कर काटता है । दरसत = देखकर । मन न पत्यातु = मन नहीं पतियाता, तबीयत नहीं कबूल करती ।