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सटीक:बेनीपुरी
 

रसीले फूल पर भौंरा चक्कर काट रहा है, किन्तु झुककर और झपटकर वह नहीं लिपटता—झटपट उस फूल का आलिंगन नहीं करता, क्योंकि उस फूल का अत्यन्त सुकुमार गात देखकर स्पर्श करने को उसका मन नहीं पतियाता—उसकी तबीयत नहीं कबूल करती—(डर है कि कहीं स्पर्श करने से उसका सौकुमार्यपूर्ण) सौंदर्य नष्ट न हो जाय। नोट—इस दोहे के पहले चरण को प्रश्न और दूसरे चरण को उसका उत्तर मानकर पढ़ने से और भी आनन्द आयेगा। फूलों पर भौंरे को मँड़राते देखकर कोई पूछता है—"रसमय पुष्प से भ्रमर क्यों नहीं लिपटता?" कोई रसिक उत्तर देता है—"पुष्प का सुकुमार गात देख चिपटने से हिचकता है।"


बहकि बड़ाई आपनी कत राँचति मति भूल।
बिनु मधु मधुकर कैं हियैं गड़ै न गुड़हर फूल॥६५८॥

अन्वय—गुड़हर फूल आपनी बढ़ाई बहकि कत राँचति, भूल मति, बिनु मधु मधुकर कैं हियैं न गड़ैं।

राँचति=प्रसन्न होती है। मधु=रस। गुड़हर=ओड़हुल।

हे गुड़हर के फूल! अपनी बड़ाई में बहककर कितना प्रसन्न हो रहे हो? भूलो मत। बिना मधु के होने से (अत्यन्त सुन्दर होने पर भी) भौंरे के हृदय में नहीं गड़ते—उसे पसन्द नहीं पड़ते।

नोट—रूपगर्विता नायिका से सखी कहती है कि केवल सुन्दर रूप से कुछ न होगा, गुण (प्रेम की सुगन्ध) ग्रहण कर, तभी नायक वश में होगा।


जदपि पुराने बक तऊ सरबर निपट कुचाल।
नए भए तु कहा भयौ ए मनहरन मराल॥६५९॥

अन्वय—सरबर निपट कुचाल जदपि पुराने तऊ बक, नए भए तु कहा भयौ ए मनहरन मराल।

बक=बगला। तऊ=तो भी। सरबर=सरोवर। निपट=एकदम। कुचाल=खराब चाल।

ऐ सरोवर! यह एकदम खराब चाल है (इसे छोड़ दो)। यद्यपि वे (बगले) पुराने साथी हैं, तो भी आखिर हैं तो वे बगले ही। और (इन