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सटीक:बेनीपुरी
 

अन्वय—मूड़ चढ़ाऐंऊ कच-मारु पीठि पर्यौ रहे गरैं परि रहै तऊ हारू हियैं पर राखियौ।

मूड़ चढ़ाना=सिर चढ़ाना, अधिक मान करना। कच-भार=केश-गुच्छ, केश-जाल, बालों का समूह। गले पड़ना=देखो ६७२ वाँ दोहा। हारु=माला।

सिर पर चढ़ाये रखने पर भी केश-गुच्छ पीठ पर ही पड़े रहते हैं—(आदर दिखलाने पर भी नीच का निरादर ही होता है), और यद्यपि गले पड़कर रहती है, तो भी माला हृदय ही पर रक्खी जाती है—(निरादृत होने पर भी सज्जन का सम्मान ही होता है)।

नोट—इस दोहे में बिहारीलाल ने मुहाविरे का अच्छा प्रयोग दिखलाया है। कविवर 'रसलीन' भी मुहाविरों के प्रयोग में बड़े कुशल हैं। 'वेणी' पर कैसी मुहावरेदार भाषा में मजमून बाँधा है—

भनत न कैसेहू बनै, या बेनी के दाय।
तुब पीछे जे जगत के पीछे परे बनाय॥
जो सिर धरि महिमा मही लहियति राजा-राइ।
प्रगटत जड़ता अपनियै मुकुट पहिरियतु पाइ॥६७४॥

अन्वय—जो सिर धरि राजा-राइ मही महिमा लहियति, मुकुट पाइ पहिरियतु अपनियै जड़ता प्रगटत।

महिमा=बढ़ाई। मही=भूमंडल (संसार) में जड़ता=मूर्खता।

जिसे सिर पर रखकर बड़े-बड़े राजे-महाराजे संसार में बढ़ाई पाते हैं, उसी मुकुट को पाँव में पहनकर (मूर्ख मनुष्य) अपनी जड़ता हो प्रकट करता है। मुकुट (आदरणीय का तिरस्कार करना ही मूर्खता है।)


चले जाइ ह्याँ को करै हाथिनु को व्यापार।
नहि जानतु इहिं पुर बसैं धोबी ओड़ कुम्हार॥६७५॥

अन्वय—चले जाइ ह्याँ हाथिनु कौ व्यापार को करैं नहि जानतु इहिं पुर धोबी ओड़ कुम्हार बसैं।

ह्याँ=यहाँ। पुर=गाँव। ओड़=बेलदार।