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सटीक:बेनीपुरी
 

सदन=घर। बाट=राह। निपट चिकट जटे=अत्यन्त दृढ़ता से जड़े हुए। कपट=छल, प्रपंच, दम्भ। कपाट=किवाड़॥

तबतक इस मन-रूपी घर में ईश्वर किस राह से आवें जब तक कि (इसमें) अत्यन्त दृढ़ता से जड़े हुए कपट-रूपी किवाड़ न खुल जायँ—निष्कपट न हो जाय।


या भव-पारावार कौं उलँघि पार को जाइ।
तिय-छबि-छायाग्राहिनी ग्रहै बीच ही आइ॥६८४॥

अन्वय—या भव-पारावार कौं उलँघि को पार जाइ, तिय-छबि-छायाग्राहिनी बीच हो आइ ग्रहै।

भव=संसार। पारावार=समुद्र। उलँधि=लाँघकर। तिय-छवि=स्त्री की शोभा। छायाग्राहिनी=लंका-द्वीप के पास समुद्र में रहनेवाली रामायण-प्रसिद्ध 'सिंहिका' नामक राक्षसी, जो आकाश में उड़नेवाले जीवों की छाया पकड़कर उन्हें खींच लेती थी—("निसिचरि एक सिंधु महँ रहई, करि माया नभ के खग गहई" —तुलसीदास)। ग्रहै=पकड़ लेती है। बीच ही=जीवनकाल के मध्य (युवावस्था) में ही।

इस संसार-रूपी समुद्र को लाँघकर कौन पार जा सकता है? (क्योंकि) स्त्री की शोमा-रूपी छायाग्राहिणी बीच ही में आकर पकड़ लेती है—(स्त्री का सौन्दर्य्य युवावस्था में ही ग्रस लेता है।)


भजन कह्यौ तातैं भज्यौ भज्यौ न एकौ बार।
दूरि भजन जातैं कह्यौ सो तैं भज्यौ गँवार॥६८५॥

अन्वय—भजन कह्यौ तातैं भज्यौ एकौ बार न भज्यौ, जातैं दूरि भजन कह्यौ, सो गँवार तैं भज्यौ।

भजन=(१) सुमिरन (२) भागना। भज्यौ=(१) भाग गये (२) भजन किया। तातैं=उससे। जातैं=जिससे।

जिसका भजन करने को कहा (जिसका भजन करने के लिए मातृगर्म में वचन दिया), उस (ईश्वर) से तू दूर भागा, एक बार भी उसे नहीं भजा—

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