अनाकनी दई=आनाकानी कर दी, सुनि अनसुनी कर दी, कान बन्द कर लिये। गुहारि=पुकार, कातर प्रार्थना। तारन-बिरदु=भवसागर से उबारने का यश, तारने की बड़ाई। बारक=एक बार। बारनु=हाथी।
(हे प्रभो, तुमने तो) अच्छी आनाकानी की (कि मेरी) पुकार ही फीकी पड़ गई! (मालूम होता है) मानो (तुमने) एक बार हाथी को तारकर अब तारने का यश ही छोड़ दिया! शायद दीनों की कातर प्रार्थना अब तुम्हें फीकी मालूम होती है।
दीरघ साँस न लेहि दुख सुख साईं नहि भूलि।
दई-दई क्यौं करतु है दई दई सु कबूलि॥६९२॥
अन्वय—दुख दीरघ साँस न लेहि, सुख साईं नहि भूलि, दई-दई क्यौं करतु है? दई दई सु कबूलि।
दीरघ=लम्बी। साईं=स्वामी, ईश्वर। दई=दैव। दई=दिया है।
दुःख में लम्बी साँस न लो, और सुख में ईश्वर को मत भूलो। दैव-दैव क्यों पुकारते हो? दैव (ईश्वर) ने जो दिया है, उसे कबूल (मंजूर) करो।
कौन भाति रहिहै बिरदु अब देखिबी मुरारि।
बीधे मोसौं आइकै गीधे गीधहिं तारि॥६९३॥
अन्वय—मुरारि श्रच देखिबी बिरदु कौन माँति रहिहै, गीधहिं तारि गीधे मोसौं आइकै बीधे।
बिरद=ख्याति, कीर्ति। मुरारि=श्रीकृष्ण। बीघे=बिघना, उलझना। गीधे=परक गये थे, चस्का लग गया था।
हे श्रीकृष्ण, अब देखूँगा कि तुम्हारा यश किस तरह (अक्षुण्ण) रहता है! (तुम) गोध (जटायु) को तारकर परक गये थे, किन्तु अब मुझसे आनकर उलझे हो—(मुझ-जैसे अधम को तारो, तो जानूँ!)
बंधु भएका दीन के को तार्यौ रघुराइ॥
तूठे-तूठे फिरत हौ झूठे बिरदु कहाइ॥६९४॥
{{Larger|अन्वय—रघुराइ का दीन के बंधु भए, को तार्यौ? झूठे बिरदु कहाइ तूठे-तूठे फिरत हौ!