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सटीक:बेनीपुरी
 

का=किस। तूठे-तूठे=संतुष्ट होकर। बिरद=बड़ाई, कीर्ति।

हे रघुनाथ, तुम किस दीन के बंधु बने—किसके सहायक हुए, और किसको तारा? झूठमूठ का विरद बुलाकर—अपनी कीर्ति लोगों से कहला-कहलाकर-तुम (नाहक) संतुष्ट बने फिरते हो!


थोरैं ही गुन रीफते बिसराई वह बानि।
तुमहूँ कान्ह मनौ भए आज-काल्हि के दानि॥६९५॥

अन्वय—थोरैं ही गुन रीझते वह बानि बिसराई, मनौ कान्ह तुमहूँ आज-काल्हि के दानि भए।

थोरैं ही=थोड़े ही। रीझते=प्रसन्न होते। बानि=आदत।

ऐ कन्हैया, (तुम जो) थोड़े ही गुण से प्रसन्न हो जाते थे वह आइत (तुमने) भुला दी। मानो तुम भी आजकल कलियुग के दानी हो गये हो (जो हजार सर पटकने पर मी वेळा नहीं देते)।


कब कौ टेरतु दीन ह्वै होत न स्याम सहाइ॥
तुमहूँ लागी जगतगुरु जगनाइक जग-बाइ॥६९६॥

अन्वय—कब कौ दीन ह्वै टेरनु, स्याम सहाइ न होत जगतगुरु जगनाइक तुमहूँ जग-बाइ लागी।

टेरत=पुकारता है। जग-बाइ=संसार की हवा।

कब से दीन होकर पुकार रहा हूँ—कातर प्रार्थना कर रहा हूँ, किन्तु हे श्याम, तुम सहाय (प्रसन्न) नहीं होते। हे संसार के गुरु और प्रभु, (मालूम होता है), तुम्हें भी इस संसार की हवा लग गई है—संसारी मनुष्यों की भाँति तुम भी निठुर बन गये हो!


प्रगट भए द्विजराज-कुल सुबस बसै ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब केसव केसवराइ॥६९७॥

अन्वय—द्विजराज-कुल प्रगट भए सुबस ब्रज आइ बसै केसव केसवराइ मेरे सब कलेस हरौ।

द्विजराज=(१) उत्तम ब्राह्मण (२) चंद्रमा। केसव=केशव, श्रीकृष्ण। केसवराइ=बिहारीलाल के पिता।