पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३०१

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२८१ सटीक : बेनीपुरी Pom यदि विना सम्पत्ति के मी श्रीकृष्ण (मेरी) पत रखते जायँ-प्रतिष्ठा बचाये रक्खें, तो अनेक अवगुणों से भरी इस (सम्पत्ति ) को मेरी बलैया चाहे । म हरि कीजति बिनती यहै तुमसौं बार हजार । जिहिं तिहिं भाँति डरयो रह्यौ पस्यौ रहौं दरबार ।। ७०७॥ अन्वय-हरि तुमसौं हजार बार यह बिनती कीजति, जिहि तिहि माँति डर यो रह्यो दरबार पस्यौ रहौं । हे कृष्ण, तुमसे मैं हजार बार यही बिनती करता हूँ कि (मैं ) जिस- तिस प्रकार से डरता हुआ मी तुम्हारे दरबार में सदा पड़ा रहूँ ! (ऐसा प्रबंध कर दो।) तो बलियै भलिये बनी नागर नन्दकिसोर । जौ तुम नीकै कै लख्यौ मो करनी की ओर ।। ७०८ ।। अन्वय-नागर नन्दकिसोर बलिये जो तुम नीक के मो करनी की ओर लख्यौ तौ मलिय बनी। हे चतुर नन्दकिशोर, मैं बलैया लूँ, यदि तुम अच्छी तरह से मेरी करतूत की ओर देखोगे-मेरे अवगुणों पर विचारोगे, तब तो बस मेरी बिगड़ी खूब बनी ! मेरा उद्धार हो चुका ! (अर्थात् नहीं होगा।) नोट-"ब्याध हूँ ते विहद असाधु हौं अजामिल तें प्राह ते गुनाही कहो तिन में गिनाओगे ? स्यौरी हो न सूद हौं न केवट कहूँ को त्यौं न गौतम-तिया हौं जापै पग धरि आओगे॥ राम सों कहत 'पदमाकर' पुकारि तुम मेरे महापापन को पारहू न पाओगे । झूठो ही कलंक सुनि सीता ऐसी सती तजी हों तो साँचो हूँ कलंको कैसे अपनाओगे?" समै पलटि पलटै प्रकृति को न तजै निज चाल । भी अकरुन करुना करौ इहिं कुपूत कलिकाल ।। ७०९॥ अन्वय-समै पलटि प्रकृति पलटै निज चाल को न तजै, इहिं कुपूत कलिकाल करुना करौ प्रकरुन मौ। करुना करो=करुना + आकरो= करुणा के भण्डार भी । कुपूत= (कु+पूत ) अपूत, अपवित्र, अपावन, पापी।