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सटीक:बेनीपुरी
 

यदि बिना सम्पत्ति के भी श्रीकृष्ण (मेरी) पत रखते जायँ—प्रतिष्ठा बचाये रक्खें, तो अनेक अवगुणों से भरी इस (सम्पत्ति) को मेरी बलैया चाहे।


हरि कीजति बिनती यहै तुमसौं बार हजार।
जिहिं तिहिं भाँति डर्यौ रह्यौ पर्यौ रहौं दरबार॥७०७॥

अन्वय—हरि तुमसौं हजार बार यहै बिनती कीजति, जिहिं तिहिं भाँति डर्यौ रह्यौ दरबार पर्यौ रहौं।

हे कृष्ण, तुमसे मैं हजार बार यही बिनती करता हूँ कि (मैं) जिस-तिस प्रकार से डरता हुआ भी तुम्हारे दरबार में सदा पड़ा रहूँ! (ऐसा प्रबंध कर दो।)


तौ बलियै भलियै बनी नागर नन्दकिसोर।
जौ तुम नीकैं कै लख्यौ मो करनी की ओर॥७०८॥

अन्वय—नागर नन्दकिसोर बलियै जौ तुम नीकैं कै मो करनी की ओर लख्यौ तौ मलियै बनी।

हे चतुर नन्दकिशोर, मैं बलैया लूँ, यदि तुम अच्छी तरह से मेरी करतूत की ओर देखोगे—मेरे अवगुणों पर विचारोगे, तब तो बस मेरी बिगड़ी खूब बनी! मेरा उद्धार हो चुका! (अर्थात् नहीं होगा।)

नोट—"ब्याघ हूँ ते बिहद असाधु हौं अजामिल तें ग्राह ते गुनाही कहो तिन में गिनाओगे? स्यौरी हौं न सूद्र हौं न केवट कहूँ को त्यौं न गौतम-तिया हौं जापै पग घरि आओगे॥ राम सों कहत 'पदमाकर' पुकारि तुम मेरे महापापन को पारहू न पाओगे। झूठो ही कलंक सुनि सीता ऐसी सती तजी हौं तो साँचो हूँ कलंको कैसे अपनाओगे?"


समै पलट पलटै प्रकृति को न तजै निज चाल।
भौ अकरुन करुना करौ इहिं कुपूत कलिकाल॥७०९॥

अन्वय—समै पलटि प्रकृति पलटै निज चाल को न तजै, इहिं कुपूत कलिकाल करुना करौ अकरुन भौ।

करुना करौ=करुना+आकरौ=करुणा के भण्डार भी। कुपूत=(कु+पूत) अपूत, अपवित्र, अपावन, पापी।