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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—सतर ह्वै गैन लगौ लगौ ओछे बड़े न ह्वै सकैं, नैन फारि निहारैं नैकहूँ दीरघ न होहिं।

सतर=बढ़ी-चढ़ी, क्रोधयुक्त। नैकहूँ=तनिक भी। गैन=गगन, आकाश। घमंड से आस्मान पर चढ़ जाने से (बढ़-बढ़कर बातें करने से भी) ओछे आदमी बड़े नहीं हो सकते। आँखें फाड़-फाड़कर देखने से (आँखें) तनिक भी लम्बी नहीं होतीं।

औरै गति औरै बचन भयौ बदन-रँगु औरु।
द्यौसक तैं पिय-चित चढ़ी कहैं चढ़ैं हूँ त्यौरु ॥७१३॥

अन्वय—और गति औरै बचन बदन-रँगु औरु भयौ, द्यौसक तैं पियचित चढ़ी चढ़ैं हूँ त्यौरु कहैं।

बदन=मुख। द्यौसक=द्यौस+एक=दो-एक दिन।

और ही तरह की चाल है, और ही वचन है, और मुख का रंग भी कुछ और ही है! दो-एक दिन से तुम प्रीतम के चित्त पर चढ़ गई हो, यह बात तुम्हारी चढ़ी हुई त्यौरी ही कह रही है।

गाढ़ै ठाढ़ै कुचनु ठिलि पिय-हिय को ठहराइ।
उकसौंहैं हहीं तौ हियैं दई सबै उकसाइ ॥७१४॥

अन्वय—गाढ़ैं ठाढ़ैं कुचनु ठिलि पिय-हिय को ठहराइ, तौ हियैं उकसौंहैं हीं सबै उकसा दई।

गाढ़ै=कठोर। ठाढ़ै=खड़े (तने) हुए। उकसौहैं=उभड़े हुए। हियैं=हृदय, छाती। दई उकसाइ=उकसा (उभाड़) दिया।

तुम्हारे स्तन प्रीतम के हृदय में बसे हैं, (सो) उन कठोर और तने हुए स्तनों को ठेलकर (धक्के से अलग कर) प्रीतम के हृदय में और कौन (स्त्री) ठहर सकती है? (अरी) तुम्हारी उभड़ी हुई छाती ने ही तो सबको उभाड़ दिया! (कामोद्दीप्त कर दिया)

गुरुजन दूजैं ब्याह कौं निसि दिन रहत रिसाइ।
पति की पति राखति बधू आपुन बाँझ कहाइ ॥७१५॥