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बिहारी-सतसई
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अन्वय—दूजैं ब्याह कौं गुरुजन निसि दिन रसाइ रहत, बधू आपुन बाँझ कहाइ पति की पति राखति।

पति=पत, लाज। बाँझ=निस्सन्तान, बंध्या।

दूसरा ब्याह करने (को लालायित होने) के कारण (नायिका के) पति पर गुरुजन रात-दिन क्रोधित होते हैं (कि तुम क्यों शादी कर रहे हो?)। (इधर, नायिका यद्यपि बाँझ नहीं है, तो भी) अपने आपको बाँझ कहकर पति की प्रतिष्ठा रखती है (ताकि लोग समझें कि पत्नी के बाँझ होने से ही बेचारा शादी करता है, मोगेच्छा से प्रेरित होकर नहीं)।

नोट—इस दोहे में पति-प्रेम का भंडार भर दिया गया है।

घर-घर तुरुकनि हिन्दुअनि देतिं असीस सराहि।
पतिनु राखि चादर-चुरी तैं राखी जयसाहि ॥७१६॥

अन्वय—जयसाहि, घर-घर तुरुकनि हिन्दुअनि सराहि असीस देतिं तैं पतिनु राखि चादर-चुरी राखीं।

हे जयशाह, घर-घर में तुर्क-स्त्रियाँ और हिन्दू-स्त्रियाँ सराह-सराहकर तुम्हें आशीर्वाद देती हैं! क्योंकि तुमने उनके पतियों की रक्षा कर उनकी चादर और चूड़ी (तुर्किनों की चादर और हिन्दुधानियों की चूड़ी) रख लीं—उनका सधवापन (सोहाग) बचा लिया।

जनमु जलधि पानिप बिमलु भौ जग आघु अपारु।
रहे गुनी ह्वै गर पर्यौ भलैं न मुकुता-हारु ॥७१७॥

अन्वय—जलधि जनमु बिमलु पानिप जग आघु अपारु भौ, गुनी ह्वै गर पर्यौ रहै मुकुता-हारु भलैं न।

जलधि=समुद्र। पानिप=(१) चमक (२) शोभा। आघु=मूल्य। गुनी=(१) गुणयुक्त (२) सूत्र-युक्त, गुँथा हुआ। मुकुता=मोती।

समुद्र से तुम्हारा जन्म हुआ है (कुलीन हो), स्वच्छ चमक है (सुन्दर हो), और संसार में तुम्हारा मूल्य भी अपार है (आदरणीय भी हो)। ऐसे 'गुणी' होकर भी—गुथे हुए होकर भी—किसी के गले पड़े रहना