पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३०६

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समय-समय पर सभी सुन्दर हैं, कोई सुन्दर और कोई कुरूप नहीं है। मन की प्रवृत्ति जिधर जितनी होगी, उधर उतनी ही आसक्ति होगी।

सामाँ सेन सयान की सबै साहि कैं साथ।
बाहु-बली जयसाहि जू फते तिहारैं हाथ ॥७२१॥

अन्वय—सेन सयान की सामाँ सबै साहि कैं साथ। बाहु-बली जयसाहि जू फते तिहारैं हाथ।

सामाँ=समान। सेन=सेना। साह=बादशाह। बाहु-बली=पराक्रमी। फते=फतह=विजय।

सेना और चतुराई के सामान तो सभी बादशाहों के साथ रहते हैं, किन्तु पराक्रमी राजा जयसिंहजी, विजय तुम्हारे ही हाथ रहती है।


काल्हि दसहरा बीति है धरि मूरख जिय लाज।
दुर्यौ फिरत कत द्रुमनु मैं नीलकंठ बिनु काज ॥७२२॥

अन्वय—काल्हि दसहरा बीतिहै मूरख जिय लाज धरि, नीलकंठ द्रुमनु मैं बिनु काज कत दुर्यौ फिरत।

दुर्यौ=लुकना, छिपना। द्रुमनु=वृक्षों।

कल दसहरा बीत जायगा। अरे मूर्ख, कुछ तो हृदय में लाज कर। अरे नीलकंठ, वृक्षों पर व्यर्थ क्यों लुका फिरता है?

नोट—दसहरा के दिन नीलकंठ दर्शन शुभ है।


हुकुम पाइ जयसाहि कौ हरि-राधिका-प्रसाद।
करी बिहारी सतसई भरी अनेक सवाद ॥७२३॥

अन्वय—जयसाहि कौ हुकुम पाइ हरि-राधिका- प्रसाद बिहारी सतसई करो अनेक सवाद भरी।

राजा जयसिंह की आज्ञा पाकर और राधा-कृष्ण की कृपा से 'बिहारी' ने यह 'सतसई' बनाई, जो अनेक स्वादों से भरी है—अनेक रसों से अलंकृत है।


संबत ग्रह ससि जलधि छिति छठ तिथि बासर चंद।
चैत मास पछ कृष्ण में पूरन आनँदकंद ॥७२४॥