'फते-फतह बिहारी-सतसई २८६ समय-समय पर समी सुन्दर हैं, कोई सुन्दर और कोई कुरूप नहीं है । मन की प्रवृत्ति जिधर जितनी होगी, उधर उतनी ही भासक्ति होगी। सामाँ सेन सयान को सबै साहि के साथ । बाहुबली जयसाहि जू फते तिहारै हाथ ।। ७२१ ॥ अन्वय-सेन सयान की सामाँ सबै साहि के साथ । बाहु-बली जयसाहि जू फते तिहारे हाथ। सामाँ समान । सेन =सेना । साह= बादशाह । बाहुबली-पराक्रमी । विजय । सेना और चतुराई के सामान तो सभी बादशाहों के साथ रहते हैं, किन्तु पराक्रमी राजा जयसिंहजी, विजय तुम्हारे ही हाथ रहती है काल्हि दसहरा बोतिहै धरि मूरख जिय लाज । दुग्यौ फिरत कत द्रुमनु मैं नीलकंठ बिनु काज ।। ७२२ ॥ अन्वय-काल्हि दसहरा बातिहै मूरख जिय लाज भरि, नीलकंठ द्रुमनु मैं बिनु काज कत दुर्यो फिरत । दुरयौ = लुकना, छिपना । द्रुमनु वृक्षों । कल दसहरा बीत जायगा । अरे मूर्ख, कुछ तो हृदय में लाज कर । अरे नीलकंठ, वृक्षों पर व्यर्थ क्यों लुका फिरता है ? नोट-दसहरा के दिन नीलकंठ दर्शन शुभ है। हुकुम पाइ जयसाहि को हरि-राधिका-प्रसाद । करी बिहारी सतसई भरी अनेक सवाद ।। ७२३ ॥ अन्वय-जयसाहि को हुकुम पाइ हस्रािधिका-प्रसाद बिहारी सतसई करी अनेक सवाद मरी। राजा जयसिंह की आज्ञा पाकर और राधा-कृष्ण की कृपा से 'बिहारी' ने यह “सतसई' बनाई, जो अनेक स्वादों से भरी है-अनेक रसों से अलंकृत है। संबत ग्रह ससि जलधि छिति छठ तिथि बासर चंद । चैत मास पछ कृष्ण में पूरन आनंदकंद ।। ७२४ ।।