पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३०७

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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—संवत छिति जलधि ससि ग्रह चैत मास कृष्ण पछ में छठ तिथि बासर चंद आनँदकंद पूरन।

ग्रह=नौ। ससि=चन्द्रमा, एक। जलधि=समुद्र, सात। छिति=पृथ्वी, एक। बासर=दिन। चंद=सोम। आनँदकंद=आनन्द की जड़।

संवत् १७१९ के चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में छठी तिथि और सोमवार को, यह आनन्दकन्द 'सतसई' पूरी हुई।

नोट—पद्य में संवत् के अंक उलटे ही क्रम से लिखते हैं।

सतसैया कै दोहरे अरु नावकु कै तीरु।
देखत तौ छोटैं लगैं घाव करैं गंभीरु ॥७२५॥

अन्वय—सतसैया कै दोहरे अरु नावकु कै तीरु देखत तौ छोटैं लगैं घाव गंभीरु करैं।

दोहरे=दोहे। नावकु के तीर=एक प्रकार का छोटा तीर, जो बाँस की नली होकर फेंका जाता है, और उसका निशाना अचूक समझा जाता है।

सतसई के दोहे, और नावक के तीर, देखने में तो छोटे लगते हैं, किन्तु चोट बड़ी गहरी करते हैं—घायल बनाने में कमाल करते हैं।

 

समाप्त