पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३०९

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२८९ दुर्लभ दोहे बिहारी के सोलह दुर्लभ दोहे बहुनाम ॥२॥ मुकुन्द । बकी-बिदारन बक-दवन बनमाली जितबान । दामोदर देवकि-तनज दुर्जन दयानिधान ॥१॥ सकट-सघारन अघ-हरन करना-घन घनस्याम । कुबिजा-कामुक दौ-दवन बहुमाइक विष्टि-निवारन विष्टिवर बमुह बिभूषन बीर । गीतानगाइक गरुडधुज गोबिंद गुन-गम्भीर ॥३॥ मुष्टिक-मारन मधु-मथन मथुरानाथ तरतारक ताप हरि हरि तारक मचकुन्द ।।४॥ कंस - निवृंदन कंसहर काली-मरदन काल । गोपी-बल्लभ गिरि-धरन गज-गंजन गोपाल ॥५॥ दोवे चीरद चीर-हर चतुरभुज माखन चोर । रास-रसिक सत्या-सुखद सुन्दर नन्दकिसोर ॥६॥ भव-भार-हर भगतनि-प्रिय भगवान । कमल-नयन कमला-रवन केसव कि हम कल्यान ॥७॥ नारायन नट-वेष-धर नागर-वर नरकारि। ब्रज-भूपन राधा-रवन मुरली-धरन मुरारि ॥ ८॥ मनु मान्यो कते मुनिन मनु न मनायो आइ । ता मोहन पै राधिका झगरि सँवावति पाँइ ॥९॥ जागि न पायो ब्रह्महू जोग न पायो ईस । ता मोहन पै राधिका सुमन गुहावति सीस ॥१०॥ त्रय-भंजन