पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३१

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सटीक : बेनीपुरी
 

गोपिनु सँग निसि सरद को रमत रसिकु रसरास ।
लहाछेह अति गतिनु की सबनि लखे सब पास ॥१९॥

अन्वय-सरद की निसि गोपिनु सँग रसिक रसरास रमतु, लहाछेह अति गतिन की, सबनि सब पास लखे ।

रमत = रम रहे हैं, आनन्द कर रहे हैं । रसरास = रस-रासलीला । लहाछेह = एक प्रकार का नाच जिसमें बड़ी तेजी से चक्रवत् घूमना पड़ता है; घूमते-घूमते मालूम होता है कि चारों ओर की चीजें पास नाचने लगीं । शरद् ऋतु की रात में, गोपियों के साथ, रसिक श्रीकृष्ण रसीले रास में रम रहे हैं । अत्यन्त चंचल गति के 'लहाछेह' नामक नृत्य के कारण सबने श्रीकृष्ण को सबके पास देखा ।

स्याम-सिर चढ़ि कत करति गुमानु ।
लखिबी पायन पै लुठति सुनियतु राधा-मानु ।। २० ।।

अन्वय-मोर-चन्द्रिका ! स्याम सिर चढ़ि कत गुमान करति, सुनियतु राधा-मानु, पायन पे लुठति लखिबी ।

मोर-चन्द्रिका = मुकुट में लगे मोर के पंखों की आँखें-कलँगी । गुमान = घमंड । कत = क्यों, कितना । लखिबी = देखँगी । लुठत = लोटते हुए । मान = रोप, रूठना ।

अरी मोर-चन्द्रिका ! कृष्ण के सिर पर चढ़कर क्यों इतरा रही है ? सुना है, राधा मान करके बैठी हैं । (अतएव शीघ्र ही) तुझे उनके पाँवों पर लोटते हुए देखूँगी ।

नोट-मानिनी राधा को श्रीकृष्ण जब मनाने जायेंगे, तब उनके पैरों पर माथा टेककर मनायँगे । उस समय मोर-चंदिका को राधा के पाँवों पर लोटना ही होगा । मान-भंजन का भव्य वर्णन है ।

सोहत ओ पीत पटु स्याम सलौनें गात ।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतप परयौ प्रभात ॥ २१ ॥

अन्वय- सलौने स्याम गात पीत पटु औढैं सोहत, मनौ नीलमनि-सैल पर प्रभात-आतप पस्यौ ।