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बिहारी-सतसई
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सिव सनकादिक ब्रह्महू भरि देखैं नहिं दीठि।
ता मोहन सों राधिका दै दै देवै पीठि ॥११॥
बेद भेद जानो नहीं नेति नेति कहैं बैनि।
ता मोहन सों राधिका कहै महाउर दैनि ॥१२॥
हरि को फिर्यौ न पैंड़रो लोभ फिर्यौ सब देस।
मन न भयौ कहुँ ऊजरो भये ऊजरे केस ॥१३॥
याही मैं सबु बनि गयो ब्रजबासिन को सूतु।
गहकि गरैयाँ गाइए गोद गदाधर पूतु ॥१४॥
कोटि अपछरा वारिये जो सुकिया सुखदेइ।
ढोली आँखिन ही चितै गाढ़े गहि मन लेइ ॥१५॥
भौन भीर गुरुजन भरे सकै न कहिकै बैन।
दम्हति दंड कटाक्ष भरि चाँचरि खेलत नैन ॥१६॥