पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३१०

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बिहारो सतसई २९० सिव सनकादिक ब्रह्महू भरि देखें नहिं दोठि । ता मोहन सों राधिका दे दे देवै पीठि ॥११॥ बेद भेद जानो नहीं नेति नेति कहैं बैनि । ता मोहन सों राधिका कहै महाउर दैनि ॥१२॥ हरि को फिरयौ न पैडरो लोभ फिर्यो सब देस । मन न भयो कहुँ ऊजरो भये ऊजरे केस ।।१३।। सबु बनि गयो ब्रजबासिन को सूतु । गहकि गरैयाँ गाइए गोद गदाधर ॥१४॥ कोटि अपछरा वारिये जो सुकिया सुखदेइ । ढोली आँखिन ही चितै गाढ़े गहि मन लेइ ।। १५॥ भौन भीर गुरुजन भरे सकै न कहिकै बैन । दम्हति दंड कटाक्ष भरि चाँचरि खेलत नैन ।। १६॥ याही मैं । सूतु पूतु Home